आड़ी तिरछी राह जिंदगी
( Aadi tirchi raah zindagi )
हो रही गुमराह जिंदगी आड़ी तिरछी राह जिंदगी
बदल रही जीने की राहें ढूंढ रही पनाह जिंदगी
सद्भावों के मेले लगते प्रेम प्यार दिलों में सजते
कहां गया वो वक्त सलोना भाई भाई मन में बसते
स्वार्थ के मारे सब घूमे सारे अपनी धुन में झूमे
कोई किसी का रहा नहीं मतलब से ही रस्ता चुने
वो राहें जो रोशन होती जहां बड़ों की कदर होती
बुजुर्गों का जमघट लगता मुश्किलें सब हल होती
होने लगी स्याह जिंदगी आड़ी तिरछी राह जिंदगी
सड़कें पक्की दिल कच्चा मानो हुई तबाह जिंदगी
दया क्षमा संस्कार खो गए क्या से हम क्या हो गए
टूट रही है डोर रिश्तो की तेरे मेरे मन भाव हो गए
सदाबहार बहारें लाओ जनमन प्रेम पुष्प खिलाओ
आशाओं के दीप जलाओ प्रित राह सबको लाओ
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )