आ जा कि दिल उदास है
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तुझसे बिछड़ के बहुत दूर हुऐ जा रहें हैं हम
तेरे नजदीक आने का कोई रास्ता हो तो बता
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तेरी आंखों की बेसबब तल्खीयों से आहत हूं
मेरी रुह को आगोश में लेने का ख्वाब तो सजा
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कब कहा मैंने कि आसमां से चांद ले आओ
जमीं समझ के मेरी मिट्टी से जरा दिल तो लगा
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चांद है मगन अपनी चांदनी में, शम्मा परवाने के संग
लरजते होठो से बस एक दफा मुस्कुरा के बता
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कैसे कह दूं कि बदले नहीं तुम पहले जैसे ही हो
सफर जिंदगी का छोड दो ही कदम साथ चल के बता
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किस्मत का ये फैसला मुझे मंजूर ही नहीं है
जिंदा रहने की कोई और तरकीब हो तो बता ।
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लेखिका : डॉ अलका अरोडा
प्रोफेसर – देहरादून