आखिरी दौर
( Aakhri daur )
आखिरी दौर है
जीवन का
क्यों न हम
याद कर लें अपने
किए कर्मों को,
इसी
आखिरी दौर में
याद आता है
सारे अच्छे,बुरे कर्म,
हम
भूल नही पाते हैं
सारे मर्मों को।
कौन कहता है कि
हम भूल जाते हैं
अपने सारे किए कर्म
गलत या सही,
पर याद रहे
मरने के इस
आखिरी दौर में
याद आते हैं
सब बातें वही।
किसे खिलाया
किसका?
प्यास बुझाया,
किसे बचाया?
गिरने से,
सोंच सोंच कर
सोंच समझ ले
पहले
खुद के मरने से।
कम से कम
शान्ति हो
मरते समय
मन में
तन में,
समझ में
आयेगा
न शान्ति होगी
धन में।
जीवन के इस
अंतिम दौर में
मिल लो
प्रेम से,
फिर
मिल जायेगा
तन,
पंचतत्व में,
साथ कुछ
न जाएगा,
हाथ कुछ
न आयेगा।
ओम् शांति ओम्।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
( अम्बेडकरनगर )