आँखों की नमी मुहब्बत को जाहिर कर देता है

आँखों की नमी मुहब्बत को जाहिर कर देता है

आँखों की नमी मुहब्बत को जाहिर कर देता है

 

 

आँखों की नमी मुहब्बत को जाहिर कर देता है

इंसान को मुहब्बत भी ज़रा कायर कर देता है

 

यह नहीं है की में तुझसे बात करना नहीं चाहता

बात बात पर तेरी आँखें मुझको बाहिर कर देता है

 

तेरे साथ, तुझ से फिर तेरे बाद क्या हया होगी

यक़ीनन मुझको मेरे इलाही भी इंकार कर देता है

 

तेरे हालत नहीं पूछता हूँ तो यह सिकवा है तुम्हे

मेरे दिल्लगी मुझको पेहले ही खबर कर देता है

 

एक उम्र थी जहाँ मुहब्बत आसान खेल लगता था

अब जाना की सादगी में असर बे-शुमार कर देता है

 

एक तुझे मुहब्बत नहीं दीखता मेरा वर्ना लोग कहते है

मेरे लब्ज़  ही नहीं, जिस्म भी यह इक़रार कर देता है

 

जिस तबस्सुम को ‘अनंत’ असरार कर देता है

वही तेरे होंठो में जा क्यों बसर कर देता है

 

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शायर: स्वामी ध्यान अनंता

( चितवन, नेपाल )

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