किताबों से सदा वो आ रही थी
किताबों से सदा वो आ रही थी

किताबों से सदा वो आ रही थी

 

 

किताबों से सदा वो आ रही थी

ग़ज़ल यादों की कोई रो पड़ी थी

 

दयारें आ रही थी नफ़रतों की

मुहब्बत की कली मुरझा रही थी

 

खबर दिल को नहीं थी बेवफ़ा है

वफ़ा की सोचकर राहें चुनी थी

 

वो आंखें देखती है बेरुख़ी से

मुहब्बत से जो आंखें देखती थी

 

समझकर कौन अपना देखता जो

यहां तो हर निगाहें अजनबी थी

 

करे बातें नफ़रत की इसलिए है

दिल में उसके मुहब्बत की कमी थी

 

मैं तो बस देखता ही रह गया था

जीवन से जा रही आज़म ख़ुशी थी

 

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शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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