आप ही बदल गए | Aap hi Bada Gaye
आप ही बदल गए
( Aap hi Bada Gaye )
हम अपने जंजालो में और फंसते चले गए,
उन्हे लगा यारों, हम बदल गए ।
करके नजदीकी, ये दूर तलक भरम गए,
कुण्ठा के मस्तक पर ,दाग नया दे गए।
खुशी की अपील नहीं मुस्कुराहट मॉगे,
आपाधापी की जिन्दगी से अनगिन आप गए।
ऐसा नहीं कि हम उन्हे याद नहीं,
सारा दिन रात संशय में चले गए ।
किधर का मोड किधर मुड़कर चला गया,
नए का सोच पुराने से छूटते गए।
इच्छा आज भी बलवती है मिलन की।
बस दर्द हरा हो गुलाबी गुलाब हो गए।
जितना सफर किया बस ये समझा,
हर शख्स को समझते समझते हमी नायाब हो गए ।
मेरे रंग की रंगीनियत दुनिया में ऐसी फैली,
हम एक अमावस के महताब हो गए ।
दूसरो को अब क्या ही उलाहना देना,
अपने आप झांको आप ही बदल गग़,ए।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई
यह भी पढ़ें :-