Man ka aagan kavita
Man ka aagan kavita

मन का आंगन

( Man ka aagan )

 

बात  अकेले  पन की हैं ।
उसमें उलझे पन की है ।।

उलझन  में  सीधा रस्ता ।
खोज रहे जीवन की है ।।

कांटे  भरे  चमन  में  एक ।
तितली के उलझन की है ।।

नहीं एक भी फूल खिला ।
सूने उस मधुबन की है ।।

जिसमें  जाल  तुम्हारे  हों ।
मन के उस आंगन की है ।।

 

 

लेखक :  डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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