अभिलाषा | Abhilasha kavita
“अभिलाषा”
( Abhilasha )
चाह बहुत मनमंदिर मे भारत वीरो का गान करूं
उनकी त्याग तपस्या का सदा मान सम्मान करूं
श्रद्धा सुमन से ईश्वर की निसादिन करूं मैं पूजा
भक्ति भाव में जो सुख पाऊं और कहां है दूजा
दिल मे ईच्छा गुरु चरणों में बना रहे मेरा ध्यान
शून्य ह्रदय में भर जाए जीवन का सच्चा ज्ञान
मन चाहे निज तात मात की हरदम करूं मैं सेवा
ममता के कर कमलों से जीवन भर करूं कलेवा
अखिल विश्व के जन-मानस में मानवता भर जाए
दया धर्म उपकार के पथ पर आगे कदम बढ़ाएं
सभी सुखी हो वसुधा पर कोई न भूखा सोवे
कष्ट मलिनता पाप दूर हो कोई दुखी ना होवे
प्रेम भाव हो जन-जन में बना रहे भाईचारा
एक दूसरे के कंधों का मिलता रहे सहारा
प्रबल कमाना जग जीवन से दूर होय अंधियारा
अज्ञान तिमिर का नाश हो खिले ज्ञान उजियारा