अदाएं तुम्हारी | Adayein Tumhari
अदाएं तुम्हारी
( Adayein Tumhari )
लुभाती हैं दिल को अदाएं तुम्हारी।
रुलाती हैं लेकिन दग़ाएं तुम्हारी।
गुमां पारसाई का होता है इनमें।
निराली हैं दिलबर ख़ताएं तुम्हारी।
किए इस क़दर हमपे अह़सान तुमने।
भुलाएंगे कैसे वफ़ाएं तुम्हारी।
बजाए शिफ़ा के बढ़ाती हैं ईज़ा।
पिएं किस तरह़ हम दवाएं तुम्हारी।
मुह़ब्बत से कानों में कहते थे जो तुम।
वो बातें किसे हम बताएं तुम्हारी।
नज़र तुम ही आते हो हर एक शय में।
भला कैसे सूरत भुलाएं तुम्हारी।
दुखाती हैं रह-रह के दिल को हमारे।
कहां तक भुलाएं जफ़ाएं तुम्हारी।
बुरा भी कहा तो कहा हंसते – हंसते।
दुआ़ओं सी थीं बद-दुआ़एं तुम्हारी।
इजाज़त अगर हो तुम्हारी तो अब हम।
फ़राज़ उनको ग़ज़लें सुनाएं तुम्हारी।
पीपलसानवी
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