अगर इज़ाज़त हो | Agar Ijazat Ho
अगर इज़ाज़त हो
( Agar ijazat ho )
जुबाँ को नज़्म बना लूँ अगर इज़ाज़त हो
ठहर मैं होश आ लूँ अगर इज़ाज़त हो ॥
चमन ग़लीज़ बड़ा आँधियों ने कर डाला
इसे मैं पाक़ बना लूँ अगर इज़ाज़त हो ॥
हमें मिले न अगर मुश्किलें डगर क्या वो?
हवा से हाँथ मिला लूँ अगर इज़ाज़त हो ॥
बड़ी लगाईं है आरायशी नशेमन में
वजन से शाख़ बचा लूँ अगर इज़ाज़त हो ॥
रवाँ रहे है यहाँ फ़ासले दिलों के पर
शबब-ए-फ़र्क़ हटा लूँ अगर इज़ाज़त हो ॥
लगे हुए हैं सभी होड़ में तरक्क़ी के
जिगर मैं खोल के गा लूँ अगर इज़ाज़त हो ॥
नहीं यक़ीन बड़ा बेवफ़ा नज़र याशी
इसे मैं धार लगा लूँ अगर इज़ाज़त हो ॥
सुमन सिंह ‘याशी’
वास्को डा गामा,गोवा
वज़्न १२१२ ११२२ १२१२ २२/११२
रदीफ़ लूँ अगर इज़ाज़त हो
क़ाफिआ आ स्वर की बंदिश
आराइसी : सजावट
नशेमन : घर
ग़लीज़ : गन्दा प्रदूषित
रवां : ज़ारी, चालु
शबब-ए-फ़र्क़ : दूरिओं का कारण