Agni Pariksha
Agni Pariksha

अग्नि परीक्षा

( Agni pariksha ) 

 

सीता आज भी पूछ रही है,
हे नाथ,
आप तो अवतरित हुए थे,
जगत के कल्याण हेतु,
जगत पिता है आप,
नारायण के अवतार हैं,
फिर भी आपको नहीं विश्वास है,
हमारी पवित्रता पर,
फिर कैसे कहूं कि,
आप भगवान है।

आखिर क्यों,
युगों युगों से,
स्त्री को ही क्यों?
देनी पड़ती है अग्नि परीक्षा,
आखिर मैं ही क्यों दूं अग्नि परीक्षा,
आप भी तो मुझसे दूर थें,
फिर मैंने तो नहीं शंका किया,
आप की पवित्रता पर,
जब दोनों ही अलग-अलग थें तो,
दोनों ही को देनी होगी अग्नि परीक्षा,
जब आपने साथ जीने मरने का,
लिया था अग्नि की साक्षी में संकल्प,
फिर आखिर मैं ही क्यों दूं अकेले अग्नि परीक्षा,
आपकों भी देनी होगी अग्नि परीक्षा,
तभी पूर्ण होगा हमारा आपका,
साथ जीने मरने का संकल्प।

सीता कल भी पूछ रही थी,
सीता आज भी पूछ रही है,
आखिर स्त्री को ही क्यों,
युगों युगों से,
देनी पड़ती हैं अग्नि परीक्षा,
पुरुष क्यों नहीं देता अग्नि परीक्षा।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

यह भी पढ़ें:-

नवरात्रि | Navratri

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here