Navratri

नवरात्रि

( Navratri ) 

 

उन्होंने नवरात्रि व्रत,
बहुत नियम धर्म से निभाया,
देवी का पूजन किया,
सिंगार किया,
आरती किया,
आज अष्टमी को,
कुंवारी कन्याओं के,
पांव भी पखारे,
तभी उनको पता लगा कि,
बहूं के पेट में,
फिर बेटी होने वाली है,
फिर उन्होंने अखंड व्रत ले लिया,
जब तक बच्ची का गर्भपात करवा नहीं देंगी,
अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी।
आखिर उनकी जिद के आगे,
बहूं की एक न चली,
अपने कलेजे के टुकड़े को,
अजन्मी बच्ची को,
जन्म लेने से पहले ही,
गर्भ में ही,
उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी।
आज कन्या का पांवों को धोने वाली,
उसकी सास बहुत ही खुश नज़र आ रही थी,
उसने बहुत बड़ा पुण्य कार्य कर लिया है।
आज अबोध बच्ची पूछ रही,
नौ दिन तक नवरात्र में,
देवी की पूजा करने वालों से,
आखिर मेरा कसूर क्या था?
क्या मुझे जीने का अधिकार नहीं,
क्यों इतने पाखंडी बने हुए हों,
पत्थर की मूर्ति को भोग खिलाते,
मुझ अबोध बच्ची को,
जन्म लेने से पहले ही मार डालते।
बंद करो अब यह पाखंड।
नवरात्रि में देवी की पूजा करना,
पांव धोकर पीना।
जब तक भारत में,
गर्भ में बच्चियों को मारा जाता रहेगा,
यह सवाल अजन्मी बच्ची पूछतीं रहेंगी।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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