ऐसे बहाने ढूंढ़ता हूं
वो हंसी आज़म इशारे ढूंढ़ता हूं!
प्यार के ऐसे बहाने ढूंढ़ता हूं
दें रवानी प्यार की ख़ुशबू हमेशा
प्यार के ऐसे नजारे ढूंढ़ता हूं
जो हमेशा दें वफ़ाओ का सहारा
शहर में ही वो सहारे ढूंढ़ता हूं
डूबा हूं ऐसा मुहब्बत के दरिया में
प्यार के मैं वो किनारे ढूंढ़ता हूं
जो मुहब्बत की रवानी से टूटे है
नफ़रतों की वो दीवारें ढूंढ़ता हूं
नीद आती ही नहीं जिसकी खुशबू से
रोज़ मैं तो वो बहारें ढूंढ़ता हूं
रात भर सोने नहीं देते मुझे जो
वादियों में वो पुकारे ढूंढ़ता हूं
[…] ऐसे बहाने ढूंढ़ता हूं […]