अकेला हूँ चले आओ कहां हो
अकेला हूँ चले आओ कहां हो!
न यूं ही छोड़कर जाओ कहां हो
रवानी नफ़रतों की ख़त्म होगी
मुहब्बत बनके छाओं कहाँ हो
तुम्हारे घर आया मिलनें को कोई
न इतने भाव यूं खाओ कहां हो
अदावत की मिट जाये प्यास दिल से
मुहब्बत का पानी लाओ कहां हो
टूटे दिल को सकूं आये आज़म के
ग़ज़ल कोई सनम गाओ कहां हो