अलसायी सी ललचाई सी
( Alsai si lalchai si )
अलसायी सी ललचाई सी, दंतों से अधर दबायी सी।
सकुचाई सी शरमाई सी, मनभाव कई दर्शायी सी।
घट केशु खोल मनभायी सी,अकुलाई सी बलखाई सी।
चुपचाप मगर नयनों से वो, रस रंग भाव भडकायी सी।
थम के चले गजगामिनी सी,सौंदर्य निखर के आयी सी।
मनमोहक छवि दर्शायी सी,जस लगे अप्सरा आयी सी।
वो रूके कभी लहरायी सी,यौवन को सम्हाल न पायी सी।
मीनाक्षी नयना मेघ लिए, बरबस ही हृदय पर छायी सी।
आमंत्रित कर घबरायी सी, नयनन से धरा समायी सी।
मन शेर कहे अधरायी सी, प्रियतम के अंग समायी सी।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )