अमराई बौराई
अमराई बौराई
पीपल के पात झरे
पलाश गये फूल।
अब भी न आये वे
क्या गये हैं भूल।
गेंदे की कली कली
आतप से झुलसी,
पानी नित मांग रही
आंगन की तुलसी,
अमराई बौराई
फली लगी बबूल।
पीपल के पात झरे
पलाश रहे फूल।
काटे नहीं रात कटे
गिन गिन कर तारे,
कोयलिया कूक रही
घर के पिछवारे,
हहर हहर पवन चले
उड़ रही है धूल।
पीपल के पात झरै
पलाश रहे फूल।
आने की बात कही
लौट के न आये,
कांटे सी सूख रही
कौन पिये खाये,
हृदय अधीर हो रहा,
चुभ रहा है शूल।
पीपल के पात झरे,
पलाश रहे फूल।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)