बेचना है तो नभ को बेच धरा को रहने दे
बेचना है तो नभ को बेच धरा को रहने दे
नदी को रहने दे और किनारा को रहने दे
मछुआरे मछलियांँ पकड़ कर जी लेते हैं
रूखी – सूखी रोटियांँ सहारा को रहने दे
सड़क पर दौड़ लेती है तेरी नयी गाड़ियांँ
एक मेरी भी टूटी गाड़ी खटारा को रहने दे
उनकी मछलियांँ ले जाती है खटारा गाड़ी
जिंदगी की लकुटियाँ सहारा को रहने दे
देते नसीहत हो आए हो जब से तुम यार
बहुत तो नहीं एक गुब्बारा को रहने दे।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड
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