Kavita Nazar ki Dori
Kavita Nazar ki Dori

नजर की डोरी!

( Nazar ki dori )

 

मत फेंको नजर की डोरी रे!
लुकछिप के।
देखो उठती जवानी अभी कोरी रे!
लुकछिप के।

होंठ रंगीले उसकी आँखें शराबी,
चटक चुनरिया और चाल नवाबी।
मत उड़ चिरई-सी गोरी रे!
लुकछिप के।
मत फेंको नजर की डोरी रे!
लुकछिप के।
देखो उठती जवानी अभी कोरी रे!
लुकछिप के।

आइसक्रीम,कुल्फी ज्यादा है खाती,
रबड़ी,जलेबी न उसको है भाती।
वो खाती है लॉली पॉप चोरी रे!
लुकछिप के।
मत फेंको नजर की डोरी रे!
लुकछिप के।
देखो उठती जवानी अभी कोरी रे!
लुकछिप के।

आएगा एक दिन उसका भी सजना,
बजेगी शहनाई उसके भी अंगना।
तब खेलेगी पिया संग होरी रे!
लुकछिप के।
मत फेंको नजर की डोरी रे!
लुकछिप के।
देखो उठती जवानी अभी कोरी रे!
लुकछिप के।

बरसेगा रंग और पिएगी भंग को,
कैसे छिपायेगी नाजुक बदन को।
होगी वहाँ जोराजोरी रे!
लुकछिप के!
मत फेंको नजर की डोरी रे!
लुकछिप के।
देखो उठती जवानी अभी कोरी रे!
लुकछिप के।

हर रात होगी उसकी दिवाली,
गमकेगी नित्य वो फूलों की डाली।
नयनों से पीते नर -नारी रे!
लुक- छिपके।
मत फेंको नजर की डोरी रे!
लुकछिप के।
देखो उठती जवानी अभी कोरी रे!
लुकछिप के।

फैला है सुख तू धरती पे देखो,
बुराई का कचरा किसी पे न फेंको।
जिन्दगी बनाओ न भारी रे!
लुकछिप के।
मत फेंको नजर की डोरी रे!
लुकछिप के।
देखो उठती जवानी अभी कोरी रे!
लुकछिप के।

खाओ निशिदिन तुम भी मलाई,
सबकी भलाई में अपनी भलाई।
झूलो झूला पारापारी रे!
लुकछिप के।
मत फेंको नजर की डोरी रे!
लुकछिप के।
देखो उठती जवानी अभी कोरी रे!
लुकछिप के।

 

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )
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