Apne Hak ko Jane
Apne Hak ko Jane

अपने हक को जाने

( Apne hak ko jane ) 

वह मां थी दो बेटो की
बुढ़ापे में ढूंढते ढूंढते
पास मेरे वो आई थी
बिना पूछे ही बयां करती
आंखें छल छला आई थी l

खुद के घर में खुद रहने को
अधिकार मांगने आई थी l
शब्दों के तीखे वाणों से
छलनी होकर आई थी l

पति गुजर गए थे प्यारे
छोड़ गए थे वेसहारे l
दो वक्त की रोटी के लाले
मिला दान में वो ही खाले l

जिन्हें खिलाया गोद में
बन बैठे थे दुश्मन सारे l
अपशब्दों की बौछार से
मर रही थी बिन मारे l

दूध पिलाया बड़ा किया
वही उसे अब धुत्कारे l
रही मालकिन जिस घर की
छीन लिए हक उसके सारेl

सुधरेंगे न रो कर हालत
माता अधिकारों को जाने l
अपनी संपत्ति के हक को
वह जाने और पहचाने l

करे जो सेवा उसे ही देना
मुट्ठी अपनी बंद ही रखना l

 

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

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