Galat Kaun
Galat Kaun

गलत कौन

( Galat kaun ) 

 

औरत ,महिला ,लड़की ,नारी
स्त्री बनकर दिखती कितनी बेचारी
स्वयं जगाती उर मे काम वासना
फिर भी होती वही सिद्ध सुकुमारी..

महिला संग बलात्कार हुआ
नारी की इज्जत लूटी गई
फलां की बहू बदचलन हुई
उसकी लड़की घर से भाग गई…

कटि के कुछ नीचे ही पहना वस्त्र
खुली जांघ मे तो लगती निर्वस्त्र
खुली पीठ,खुला पूरा वक्षस्थल
दिखाने को स्वयं लालायित उभार सब…

अपराध मे दोष किसका होगा
मचला नही पुरुष तो वह कैसा होगा
बदलाव मे नारी ही नग्न होती गई
वही अर्थ की कामुकता मे मग्न होती गई..

ग्राहक ,तो कोई बन लुटेरा आया
नाइट क्लब,पार्क,ग्रुप मे उनका ही डेरा पाया
यदि सुधर जाए अब भी खुद मे नारी
तो पुरुष ,कभी न होगा उसपर भारी..

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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