अपनी तकदीर | Apni Taqdeer
अपनी तकदीर
( Apni Taqdeer )
अपनी तकदीर में जुदाई थी
यार की हो रही विदाई थी
आग चाहत की जो लगाई थी
हमने अश्क़ो से फिर बुझाई थी
हाथ हाथों में फिर आकर छूटा
कैसी तेरी खुदा लिखाई थी
क्यूँ करूँ याद उस सितम गर को
प्यार में जिसके बेवफाई थी
एक वो ही पसंद था मुझको
अब जो मेरे लिए पराई थी
याद रह रह के आ रहे वो पल
चोट जिस पल जिगर पे खाई थी
दो दिलों की नही कोई सुनता
अर्जी हमने प्रखर लगाई थी
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
यह भी पढ़ें:-