अवनीश कुमार गुप्ता ‘निर्द्वंद’ की कविताएं | Avnish Kumar Gupta Poetry
पढ़ाई आउटसोर्स, भविष्य रिसोर्स
परीक्षा डील हो गया,
पेपर सुबह लीक हो गया।
होश किताबों में सिमट गया,
जुगाड़ ही अब जीत गया।
मानव मशीन बनता गया,
सोच प्रोग्रामिंग में ढल गया।
भावना कोडिंग में फंसी,
दिल अब सर्किट में बसी।
सवाल अब गूगल से पूछे,
ज्ञान यूट्यूब शॉर्ट्स में बुझे।
तर्क अब चैटबॉट से मिलते,
लाइफ आर्टिफिशियल में खिलते।
मशीन मानव बनते गए,
रिश्ते नेटवर्क में अटक गए।
संवेदना ऑफलाइन हो गई,
असली दुनिया लॉगआउट हो गई।
बसंत वंदना
सरस्वती माँ, ज्ञान की दाता,
बसंत में खिले फूलों की माला।
वीणा तुम्हारी, स्वरों का सागर,
मन को करे निर्मल, मति को अगर।
श्वेत वस्त्र में, शुभ्र कमल सी,
सबके मन में ज्ञान ज्योति जगी।
बसंत पंचमी, ऋतुओं की रानी,
तुम्हारी कृपा से बुद्धि हो ज्ञानी।
विद्या की देवी, सबकी आशा,
तुम्हारे बिना जीवन है व्यर्थ।
कलम की धारा, शब्दों का मेला,
तुम्हारी छाया में जीवन खेला।
सृष्टि का सार, ज्ञान का भंडार,
तुम्हारे चरणों में सबका आधार।
मूक को वाणी, अंधे को नेत्र,
तुम्हारी कृपा से मिले सबके हेतु।
बुद्धि की धारा, मति की गंगा,
तुम्हारे बिना जीवन है अंगारा।
सरस्वती माँ, तुम्हारी महिमा,
अनंत है, अगम है, अद्भुत है रीमा।
बसंत की बहार, फूलों की सुगंध,
तुम्हारे ज्ञान से भर दे संसार।
विद्या का दीप, जलाओ हमारे मन में,
तुम्हारी कृपा से बने हम ज्ञानी।
शब्दों का जाल, भावों का सागर,
तुम्हारे बिना जीवन है अधूरा।
सरस्वती माँ, तुम्हारी कृपा से,
जीवन में हो सदा ज्ञान की रोशनी।
बसंत पंचमी, तुम्हारा त्योहार,
ज्ञान का उजाला, मन का विस्तार।
तुम्हारे चरणों में सबका निवास,
तुम्हारी कृपा से हो सबका उद्धार।
वीणा की तान, मन को करे मोहित,
तुम्हारे ज्ञान से भर दे संसार।
सरस्वती माँ, तुम्हारी महिमा,
अनंत है, अगम है, अद्भुत है रीमा।
बसंत की बहार, फूलों की सुगंध,
तुम्हारे ज्ञान से भर दे संसार।
विद्या का दीप, जलाओ हमारे मन में,
तुम्हारी कृपा से बने हम ज्ञानी।
शब्दों का जाल, भावों का सागर,
तुम्हारे बिना जीवन है अधूरा।
सरस्वती माँ, तुम्हारी कृपा से,
जीवन में हो सदा ज्ञान की रोशनी।
बसंत पंचमी, तुम्हारा त्योहार,
ज्ञान का उजाला, मन का विस्तार।
तुम्हारे चरणों में सबका निवास,
तुम्हारी कृपा से हो सबका उद्धार।
वीणा की तान, मन को करे मोहित,
तुम्हारे ज्ञान से भर दे संसार।
सरस्वती माँ, तुम्हारी महिमा,
अनंत है, अगम है, अद्भुत है रीमा।
बसंत की बहार, फूलों की सुगंध,
तुम्हारे ज्ञान से भर दे संसार।
विद्या का दीप, जलाओ हमारे मन में,
तुम्हारी कृपा से बने हम ज्ञानी।
शब्दों का जाल, भावों का सागर,
तुम्हारे बिना जीवन है अधूरा।
सरस्वती माँ, तुम्हारी कृपा से,
जीवन में हो सदा ज्ञान की रोशनी।
बसंत पंचमी, तुम्हारा त्योहार,
ज्ञान का उजाला, मन का विस्तार।
तुम्हारे चरणों में सबका निवास,
तुम्हारी कृपा से हो सबका उद्धार।

अवनीश कुमार गुप्ता ‘निर्द्वंद’
प्रयागराज
यह भी पढ़ें :–