बाल इच्छा 

( Baal iccha )

 

मय्या मोरी ! मुझको भी एक बंसी ला दो ना…
चलो,मेले या फिर यहीं मँगवा दो ना;
ताकि मैं भी जा बैठूँ यमुना जी के तीरे
और मधुर स्वर में बजाऊँ बंसी धीरे-धीरे ।

मय्या ! मुझको भी प्यारी-सी गय्या ला दो ना,
ले आएँ शहर से ऐसा बाबा से कह दो ना;
फिर मैं भी जाया करूँगा गय्या चराने
और दोस्तों संग खेलूँगा बस इसी बहाने ।

मय्या ! मुझको भी माखन-मिश्री ला दो ना,
तरह-तरह के मेवे और पकवान बना दो ना;
तब मैं भी दाऊ सा बलशाली हो जा आऊँगा
और मानवता के शत्रुओं को मार गिराऊँगा ।

मय्या ! मुझको भी कान्हा से वस्त्र ला दो ना,
मुझे भी सलोने शाम की तरह सजा दो ना;
जिससे ना अखरे मुझे मेरा यह श्याम रंग
तब सभी बच्चे स्वयं आकर खेलेंगे मेरे संग ।

मय्या ! मुझको भी एक मोर मुकुट ला दो ना,
हीरे-मोतियों के आभूषण मुझे भी पहना दो ना;
तब मैं भी श्रेष्ठ जनों से आदर-मान पा सकूँ-
पढ़ा-लिखा मुझे भी कृष्णा-सा विद्वान बना दो ना ।

 

कवि :संदीप कटारिया ‘ दीप ‘

(करनाल ,हरियाणा)

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