बात उस चांँद की है

( Baat us chand ki hai ) 

 

बात उस चांँद की है
जो कवियों की कल्पनाओं में मुस्कुराता रहा
जो बच्चों को अपना मामा नजर आता रहा
एक अद्भुत शीतल ग्रह,
सौंदर्य शिखर
मन का कारक,
सब का अति प्रिय था जो दुर्लभ।

बात उस चांँद की है
जिसकी श्वेत रश्मियों से
बुद्धि प्रकाशित कर
कोई बुद्ध बना।
चांँद को बना हमसफर वियोगी किया रातजगा
तो कोई जोगी बना प्रेम का अलख जगा।

बात उस चांँद की है
जिसके दर्शन मात्र से गिरहें खुलती हैं
कवि की कलम मधुरम छंद रचती है
जिसका खुमार कभी नहीं उतरता
डगर- डगर, कदम -कदम पर साथ जो है चलता
सदियों से हमसफर है मन का
कविता ,कहानियों, गीतों में
सुंदर अस्तित्व है जिसका।

बात तो उस चांँद की है
जिसे कोमलांगी छलनी से तकती है
मन के धागे जिसके साथ बाँधा करती है
जिसकी अतुलनीय छवि प्रेम का रस भरती है
जब सौंदर्य की प्रतिमा मान उसे
किसी ने चांँद कहा,
चांँद की ओट ,कभी चांँद की चांँदनी में रास रचा।

बात उस चांँद की है
जब भारत माँ ने तिरंगा
तिलक” विक्रम” भाल सजा,
चांँद के हाल-चाल पूछने भेजा
भारत का गौरव गान गाते हुए
उसने जिस क्षण चांँद का चरण स्पर्श किया
जयघोष का उद्घोष हुआ
विश्व में भारत में इतिहास रचा।

बात उस चांँद की है जब
चंद्रयान 3 को पहुंँचाने में, नंदिनी, रितु , अनुराधा,
मुथैया में दिखी
गार्गी, मैत्रेयी , अपाला, लोक मुद्रा जैसी अग्नि शिखा,
नारी शक्ति ने फिर अपनी बुद्धिमत्ता का
लोहा मनवा दिया ।

हमारे वैज्ञानिकों ने तेईस अगस्त दो हजार तेईस को
भारत को स्पेस पावर बना दिया
प्रज्ञान रोवर ने चांँद तल पर उतर
भारतीय ज्ञान का ध्वज फहरा दिया
प्रफुल्लित रोशन है दिग- दिगंत
अब भारतीय मेधा से प्रभासित – परिभाषित है चंद्र।

 

@अनुपमा अनुश्री

( साहित्यकार, कवयित्री, रेडियो-टीवी एंकर, समाजसेवी )

भोपाल, मध्य प्रदेश

 [email protected]

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