बागबा | Bagba
बागबा
( Bagba )
तुम तो बागबा थे
तुम्हारे खिलाए हुए फूल,आज भी
किए हैं गुलजार गुलशन को….
आप अपने ही लगाए
कांटों की बाड़ मे
कर लिए पैर जख्मी
कसूर तो आप ही का था..
बदलेगी न जब तक मानसिकता आपकी
संभव होगी न उन्नति कभी
टटोलते हो गैर की कमियों को
भूल जाते हो अपनी ही…..
दो कदम की चढ़ाई ही
ऊंचाई नही होती
रंगीन बादलों मे पानी नही होता
हर रात भयावह भी नही होती…
गिरना उठाना तो गतिक्रम है जीवन का
ठोकर ही सिखाती हैं
कला जिंदगी की…
न वक्त मरता है , न अवसर खत्म होते हैं
अतीत को थामकर
वर्तमान को संवारने की शक्ति से ही
भविष्य के महल खड़े होते हैं….
( मुंबई )