![Kavita Yah Waqt bhi Beet Jayega Kavita Yah Waqt bhi Beet Jayega](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2023/02/Kavita-Yah-Waqt-bhi-Beet-Jayega-696x464.jpg)
यह वक्त भी बीत जाएगा
( Yah waqt bhi beet jayega )
कुदरत की यह अद्भुत लीला,
रात गई तब दिन आएगा।
चीर अंधेरा रवि निकलेगा,
यह वक्त भी बीत जाएगा।।
जन्म मरण का खेल रचा है,
जो आता है सो जाता है।
कर्मों के अनुसार जीव सब,
किया कर्म ही भुगताता है।
राजा बनकर राज चलाता,
नहीं अमरता वो पाएगा।
चीर अंधेरा रवि निकलेगा,
यह वक्त भी बीत जाएगा।।
मेहनत करता है वो दिनभर,
लौट शाम जब घर आता है।
मुश्किल से परिवार पालता,
रूखा सूखा ही खाता है।
नींद चैन कब ले पाता है,
कल का सपना ही आएगा।
चीर अंधेरा रवि निकलेगा,
यह वक्त भी बीत जाएगा।।
सुख दुख आते जाते रहते,
कुदरत की लीला है न्यारी।
फूल खिलेंगे कभी खुशी के,
कंटक पथ चलना अति भारी।
जिसने भी है हिम्मत हारी,
मंजिल तक ना जा पाएगा।
चीर अंधेरा रवि निकलेगा,
यह वक्त भी बीत जाएगा।।
कहां जन्म होगा नर तेरा,
कौन ग्राम घर नगर रहेगा।
कभी सेठ बन मौज मनाएं,
दीन हीन बन कष्ट सहेगा।
जांगिड़ किसको कौन कहेगा,
आज दुखी है कल गाएगा।
चीर अंधेरा रवि निकलेगा,
यह वक्त भी बीत जाएगा।।
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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