बहाने कितने | Bahane Kitne
बहाने कितने
( Bahane Kitne )
मुस्कुराने के बहाने कितने
फर्क क्या,आएं रुलाने कितने ॥
अब यकीं रूठ किधर जा बैठा
रंग बदले हैं ज़माने कितने ॥
बेअसर ख़ार भी है अब उसको
सह लिया तल्ख़ व ताने कितने ॥
होती उस सम्त निगाहें सबकी
कह गईं, उसके दिवाने कितने ॥
उसकी गैरहाज़िरी में बज़्मो से
लोग साधें हैं निशाने कितने ॥
मैंने दिल की कही ,जो आदत है
सुनने में आये फ़साने कितने ॥
झूठ पर तालियां, बोला सच तो
आ गए तुमको मिटाने कितने ॥
के ज़फ़र-याब सिर्फ कारण हैं
नाउमीदों के बहाने कितने ॥
कितना तन्हा था गरीबी,परअब
आ गए प्यार जताने कितने ॥
सुमन सिंह ‘याशी’
वास्को डा गामा,गोवा
शब्द
ख़ार– कांटे
तल्ख़- कड़वा; कटु शब्द
फ़साने– दास्ताँ . कहानियां
ज़फ़र–याब – विजेता, जिष्णु, कामयाब
नाउमीदों– निराश, हताश, नाकाम, हारा हुआ
सम्त – ओर, दिशा ,तरफ