बाल मजदूरी
खुद असमर्थ बनकर
बच्चों से कराते मजदूरी।
अगर कोई उठाये सवाल
कहते यह हमारी मजबूरी।
बच्चे न माने तो
दिखाए चाकू छुरी।
उनके उज्जवल भविष्य से खिलवाड़ कर
कराते उनसे बाल मजदूरी।
जिन हाथों में कलम होनी चाहिए
हे ! प्रभु कैसी है लाचारी?
क्यो बच्चों के जीवन में
छा रही मजदूरी की महामारी?
कलंक बन जाते खुद पर
जो कराते बाल मजदूरी।
कितनों को अपाहिज बनाकर
हाथों में पकडा देते कटोरी।
❣️
लेखक : दिनेश कुमावत
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