Meri Maati mera Desh
Meri Maati mera Desh

मेरी माटी मेरा देश

( Meri maati mera desh )

(1)

देश हमारा जैसे गंगा सागर
अति पावन इसकी माटी है
देवों की भी यह मानस माता
बंधुत्व भाव ही दिखलाती है

गंगा जमुना और सरस्वती की
संगम तट पर बहती नित धारा है
सांझ सकरे सिंधु चरण पखारे
कश्मीर मुकुट सा लगता प्यारा है

अलग सभी से मेरी माटी मेरा देश
बोली भाषा और भिन्न यहां गणवेश
अनेकता मे एकता का है प्रेम भरा
एकता मे अनेकता का संसार यहां

पानी से पत्थर तक सब पूजे जाते हैं
कण कण मे भी प्रभु समझे जाते हैं
यहीं से खुलता सतयुग का प्रवेशद्वार
ऋषिमुनियों का अब भी बसता संसार

गर्व मुझे है मेरी माटी मेरे देश पर
गर्व मुझे है इसके विशेष होने पर
अखिल विश्व को समझा सकता हूं
क्यों है प्यारी मेरी माटी मेरा देश

(2)

कहूं फख्र से,मेरी माटी मेरा देश
सबमें है इसका ही स्थान विशेष
लहराए गगन तिरंगा प्यारा
सम्मान मे इसके सबके झुकते शीश

अगस्त पंद्रह सौ सैंतालीस मे
मिली मुक्ति हमे गुलामी से
आजाद वतन तब कहलाया मुल्क
धोता चरण सिंधु भी सलामी से
गर्व से कहता,मेरी माटी मेरा देश
सबमें है इसका ही स्थान विशेष….

माना,कुछ कमियां थीं संचालक मे
कुछ बाधाएं भी थीं संचालन मे
पर,देश बड़ा था,समय कहां था
होता भी संभव कैसे आनन फानन मे

अब हुआ है गर्वित देश जगत मे
धीरे धीरे बढ़ी हमारी ज्ञान संपदा
होगा श्रेष्ठ फिर विश्व पटल पर
आए जितनी चाहे विपदा आपदा
विश्वास मे हूं,मेरी माटी मेरा देश
सबमें है इसका ही स्थान विशेष….

हुई अभेद्य शक्ति देना की अपनी
भारत बनी वस्तु ही हुई कुशल
चंद्र कक्ष मे भी पहुंचा यान तृतीय
हर मुख मे एक ही घोष,भारत सफल

सुधर रही अर्थ व्यवस्था भी हमारी
धीरे धीरे है चतुर्मुखी हरियाली
जल्द बहुत ही होंगे हम सर्व श्रेष्ठ
घर घर मे होगी फिर से खुशहाली
इसी नाज़ से,मेरी माटी मेरा देश
सबमें है इसका ही स्थान विशेष…

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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