जब किसी भेड़ को नदी पार कराना होता है तो भेड़ी का मालिक एक भेड़ को नदी में फेंक देता है। उसकी देखा देखी सभी भेड़िया नदी में कूदने लगतीं हैं वह यह नहीं देखती हैं कि उससे हमारा हित है या अहित।

ऐसा ही कुछ भेड़ चाल हिंदुओं के द्वारा मजार दरगाह आदि की पूजा के प्रति लगा हुआ है। किसी भी हिंदू को यह पता नहीं होता है इससे कुछ होता भी है कि नहीं होता है बस वह मजारों दरगाहो आदि की पूजा करके अपना धन, धर्म सब भ्रष्ट कर रहा है।

हमने अपने गांव में देखा है कि दरगाह आदि की पूजा मुसलमान से ज्यादा हिंदू करता है। वह मात्र इस डर से करता है कि यदि पूजा नहीं करेंगे तो कुछ अहित हो जाएगा। यह डर उनके मन में इतनी गहराई के साथ समाया हुआ है कि पीढ़ी दर पीढ़ी हजारों वर्षों से निकल ही नहीं रहा है। ऐसे हिंदुओं को कितना भी समझाया जाए लेकिन जिसे मूड़ बने रहना है वह मूड़ बने ही रहेंगे।

इसका मूल कारण यह है के उनके मन में यह डर बैठा दिया गया है कि तुम ऐसा नहीं करोगे तो तुम्हारा बिजनेस चौपट हो जाएगा, काम धंधा बंद हो जाएगा, घर परिवार में बीमारियां आएंगे आदि आदि। जिस डर के कारण कोई ऐसी पूजा पद्धति छोड़ना भी चाहे तो वह छोड़ नहीं पाता है।

ऐसी नौटंकियों में देखा गया है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा सक्रिय रहते हैं। मजार दरगाह आदि की पूजा में भी पुरुष नाम मात्र के दिखलाइ देते हैं।

व्यावहारिक दृष्टि से भी देखा गया है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं कुछ ज्यादा ही अंधविश्वासी होती हैं। कभी-कभी महिलाओं के दबाव में भी पुरुषों को मानना पड़ता है। अंधविश्वास को फैलाने एवं उसे हजारों वर्षों से जिंदा रखने में महिलाएं सबसे आगे रही हैं।

ऐसे अंधविश्वासों में अनपढ़ ही क्या पढ़ा-लिखा भी अंधा है। यदि किसी अनपढ़ व्यक्ति को समझाया जाए तो वह कहता है कि देखो फलनवा इतना बड़ा डॉक्टर है ,इंजीनियर है, अधिकारी है वह भी तो यहां पूजा करने आ रहा है। क्या यह सब मुर्ख हैं तुम्ही एक विद्वान हो? अंधविश्वासों की जड़ को देखा जाए तो यही दिखलाई पड़ता है कि यहां अनपढ़ ही क्या पूरा का पूरा समाज हजारों वर्षों से अंधविश्वासों में जकड़ा हुआ है।

कहा जाता है कि यदि किसी झूठ को हजारों बार बोला जाए तो वह सच होने लगता है यही बातें धर्म में व्याप्त अंधविश्वास की है। स्वर्ग नरक पाप पुण्य आदि की मान्यताएं सभी धर्म में समान रूप से व्याप्त हैं। किसी भी व्यक्ति को यह पता नहीं है कि यह सब होता है कि नहीं होता है। बस जहां देखो वहां भेड़ चाल चल रही है।

देखा गया है कि जो समाज को जितनी मात्रा में अंधविश्वास और पाखंड के माध्यम से गर्त में डालता है वही और भीड़ उमड़ पड़ती है। यही कारण है कि हमारे समाज में हर गली नुक्कड़ पर जहां नए-नए दरगाह मजार उग आए हैं वहीं नए-नए अवतारी बाबा भी उग आए हैं।

बस कोई चमत्कार दिखा नहीं की भेड़ बकरियों की तरह जनता टूट पड़ती है। जनता कभी इनकी सत्यता जानने का प्रयास नहीं करती है।

यही कारण है कि इस देश में अंधविश्वास एवं पाखंड का धंधा सबसे ज्यादा फल फूल रहा है।
आज आवश्यकता है समाज को ऐसे अंधविश्वासों से बचाने की।

अधिकांश अंधविश्वास एवं पाखंड की जड़ों का कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं होता है बल्कि यह सभी तथ्यहीन होती हैं। जो हिंदू मजार दरगाह आदि की पूजा करता है उसे खुद भी नहीं होस है कि वह जो करता है उससे कुछ होता है कि नहीं होता है। बस बाप दादाओ ने किया था इसलिए वह भी भेड़ चाल में लगा हुआ है। दुनिया कितने भी चांद सूरज पर पहुंच जाए लेकिन यह भेड़ चाल है कि समाज ढोता ही रहेगा।

 

लेखक : योगगुरु धर्मचंद्र

प्रज्ञा योग साधना शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान
सहसो बाई पास ( डाक घर के सामने) प्रयागराज

 

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