Hindi Poetry On Life | भेदभाव
भेदभाव
( Bhedbhav )
फर्क नही बेटे बेटी में, दोनों ही आँखों के तारे है।
इक धरती सी धीर धरा तो, दूजा गगन के तारे है।
भेद भाव हमसे ना होता, संविधान सिखलाता है।
बेटी ही बस करता रहता, बेटों को झुठलाता है।
दोनों में अन्तर.क्या बोलों,इक शक्ति तो इक शिव है।
सोच सनातन रखोगे तो, दोनों में ही सम जीव है।
फिर क्यों महिमामंडन इक का, दूजे पर कटाक्ष करे।
संविधान में बेटी बेटी, बेटा क्या बस पाप करे।
संविधान को गढने वाले, शेर का अब हुंकार सुनों।
नीति बनाने वालों जागों, शेर के मन के ताप सुनो।
छूआ छूत और भेद भाव को, मन्दिर ना बतलाता है।
संविधान ही जाति बताता, भेद भाव सिखलाता है।
धर्म कर्म पर आधारित था,कर्म ही जाति बताता था।
शूद्र जाति का जना कर्म से, देव तुल्य हो जाता था।
आरक्षण का आग लगाया, संविधान निर्माता ने।
व्यक्ति व्यक्ति को जाति धर्म में, बाँटा है निर्माता ने।
पुरुषों और महिलाओं में भी,भेद किया इन लोगो ने।
हर मन में विद्वेष भरा और, बाँट दिया इन लोगो ने।
समता मूलक बात बत़ाओ, कैसे की जाती है।
शेर का मन मंथन करता मन,विचलित कर जाती है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )