उन्हुका दीया से नूर लेके का होई

उन्हुका दीया से नूर लेके का होई

 

जमाना के बात रोजाना होता
दरद ओरात ना गोताना होता

लिपल बतकही सोहात नइखे
सफर उन्हुकर सोहाना होता

पत्तल सीके जीअल जाता जहाँ
गरीबी कागज में खोजाना होता

परगट सिसकत बिया जिनगी
नजर के मूँद के जोहाना होता

हाय लागी कइसे लील गइलन
गटके के घटना रोजाना होता

उनुका दीया से नूर लेके का होई
अन्हार में हरदम जोताना होता |

Vidyashankar vidyarthi

विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड

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