Kavita Aam ke Aam

आम के आम गुठलियों के दाम

( Aam ke Aam guthliyon ke daam )

 

आम के आम हो जाए, गुठलियों के दाम हो जाए।
अंगुली टेड़ी करनी ना पड़े, अपना काम हो जाए।

कविता में रस आ जाए, श्रोताओं के मन भा जाए।
कलमकार रच कुछ ऐसा, दुनिया में नाम हो जाए।

आम वही जो रस टपकाए, मीठा हो मन ललचाए।
मीठे बोल मधुर सुहाने, सब के दिलों में बस जाए।

तेरे अधरों पर मुस्कानें हो, हंसी मेरे चेहरे पर छाए।
मधुर तराने गीत सुहाने, दुनिया दीवानी हो जाए।

शब्दों के अनमोल मोती, बहारों का मौसम आ जाए।
मन मयूरा झूम के नाचे, मस्त पवन समां महाकाए।

याद करे जब भी तुमको, नैनों में झलक आ जाए।
महक उठे दिल की बगिया, मनमीत नजर आ जाए।

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :

रमाकांत सोनी की कविताएं | Ramakant Soni Hindi Poetry

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here