Bhojpuri kavita majboor

मजबूर | Bhojpuri kavita majboor

मजबूर

( Majboor )

 

खुन के छिट्टा पडल, अउर पागल हो ग‌इल
ना कवनो जुर्म क‌इलक, कवन दुनिया में खो ग‌इल

जब तक उ रहे दिवाना, शान अउर पहचान के
सब केहू घुमत रहे, लेके ओके हाथ पे

आज समय अ्इसन आइल बा, लोग फेंके ढेला तान के
कहां ग‌इल मानवता, सभे हंसे जोर से ठान के

सब केहू कहेला ओके, पागल भ‌इल बा जान से
रख जवाना देखें अपना के, ओके जगह पे ध्यान से

मिल जाई सबुत जे दरद के, ओके स्थिति जान के
छोड़ दी मारल ताना, ओके आपन मान के ।

 

कवि – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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कलयुग | Kalyug par Bhojpuri Kavita

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