बुढ़िया | Budhiya Bhojpuri Kavita
बुढ़िया
( Budhiya )
दूर झोपड़ी में रहे, बहुत अन्हार।
ओमे से आवत रहे, मरत दिया के प्रकाश!
चारों ओर सन्नाटा ,कईले रहे प्रहार।
लागत रहे पेड़ पौधा अउर सब के लागल बा बुखार
ना कवनो पत्ता हीलत रहे,जाने कौन रहे बात?
हवा भी मोड़ लेले रहे मुंह, चलत रहे समय इतना ऐतना खराब।
दु डेग जब आगे बढ़नी, आवत रहे रोए के आवाज।
फूट-फूट के रोवत रहे बुढ़िया, सामने पड़ल रहे बेटा के लाश!
मालिक के बहुत पहिले हो गईल रहे स्वर्गवास!
फूट-फूट के रोवत रहे बुढ़िया सामने पड़ल रहे बेटा के लाश!
माई से पहिले बेटा मर गईल, एकरा से बड़का का होई बात!
के उठाई चपाटी ओके, केहू कब तक दी ही साथ?
अपना सामने देख बेटा के चपाटी , रोयले बड़बड़आत।
पुछे ले विधाता से, काहे आइसन कईल हमरा साथ।
आज विधाता भी बंद कईले बाने, आपन आंख!
कान में रुई डाल के सुतताने दिन-रात!
कहां गइल न्याय उनके, कवन जन्म के कईले बिया पाप?
ना रहल केहूं अब सहारा, हो गईल ऊ बर्बाद।
तनी देर में भीड़ जुटल , सब केहूं देखत रहे चुपचाप
आंख में लोर भर आईल , अउर जकड़ गईल आवाज
सब के शरीर शून्य भईल देख बुढ़िया के अइसन हाल
फूट-फूट के रोवत रहे बुढ़िया सामने पड़ल रहे बेटा के लाश!
लोग मिल -जुल के कईलक , बेटा के कामकाज।
फूट-फूट के रोवत रहे बुढ़िया सामने पड़ल रहे बेटा के लाश!
बेटा ह बुढ़ापा के सहारा, दूल्हा होला दिल के बात।
आज ओके दुनु ना रहल, ना खाए के अवकात
बुढ़िया बहुत बुढ़ भईल, न चलेके सवकास
छांनी भी अब चुये लागल बा, घर ले लेले बा अवकाश
दूर-दूर तक घर ना रहे, रहे पुरा सुनसान
कुत्ता भी ना दिखाई देवे, रहे जगह ऐतना शांत
आइसन समय में ओके, का होई हाल
सोच -सोच के बुढ़िया के टूट गईल बा आस।
फूट-फूट के रोवत रहे बुढ़िया, सामने पड़ल रहे बेटा के लाश!
धीरे-धीरे खाना-पीना, छुटल, खटिया देलक साथ
एक दिन आत्मा भी छुटल, घर में पड़ाल रहे लाश
धीरे-धीरे इ बात पसरल, फिर आईल जमात
काम क्रिया बुढ़िया के भईल, दिया गईल बुझा।
रचनाकार – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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