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वर्तमान समय में देखा जाए तो भूत प्रेत की मान्यता से लगभग सारा संसार जकड़ा हुआ है । किंतु भूत प्रेत आदि क्या है? कैसे हैं ? या नहीं हैं? इस विषय में कोई प्रामाणिक एवं वैज्ञानिक तथ्य तक नहीं पहुंच पाया है । इसीलिए समाज में तरह-तरह के भूत- प्रेत के नाम पर नौटंकीया चलती रहती हैं।

देखा गया है की कुछ लोग स्वार्थ के बंसीभूत होकर जनसाधारण को ठगने के लिए भूत प्रेत का सहारा लेते हैं । जनता में कल्पित भय बनाकर जान माल की हानि करते हैं।

भूत प्रेत की जो छवि हमारे मानस पटल पर व्याप्त है उसकी वास्तविक सत्ता कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होती। भूत बीते हुए समय को कहते हैं और प्रेत मृतक शरीर (शव) को कहते हैं। वैसे अग्नि वायु जल पृथ्वी आकाश नामक पंच महाभूत होते हैं इन्हीं से हमारा शरीर बनता है।

वर्तमान समय में इस वैज्ञानिक युग में भी जहां हम चांद पर पहुंच चुके हैं वहीं अधिकांश अशिक्षित तथा कुछ शिक्षित लोग भी भूत प्रेत नामक काल्पनिक अदृश्य शक्ति का अस्तित्व मानते हैं।

महिलाएं प्राय: अंधविश्वासी होती हैं। वह अपने बच्चों तथा परिवार के अन्य लोगों पर भी इस प्रकार का संस्कार डालती हैं कि कुछ लोग मन में भूत -प्रेत की कल्पना लिए रहते हैं ।यह संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी परिवारों में चलता रहता है।

यही कारण है कि समाज में बहुत से व्यक्ति प्रेत बाधाओ से अपनी रक्षा के लिए गंडे ताबीज आज भी बनवाकर पहनते हैं । कोई मानसिक या शारीरिक रोग होने पर उसे भूत लीला या प्रेत बाधा समझा कर ओझा सोखा सयानो के यहां दर-दर की ठोकरे खाते हैं या झाड़ फूंक करवाते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन भर दुख पाते हैं।

कोई ओझा सोखा ऐसे रोगियों को भस्म अर्थात राख में दवाई मिलाकर खाने को देते हैं तथा उसके प्रभाव से रोगी के ठीक हो जाने पर अपने तंत्र मंत्र या गंडे ताबीज के ही प्रभावशाली होने के लिए डींग हांकते हैं। इससे रोगी और उसके परिजन का भूत प्रेत के प्रति और अधिक विश्वास बढ़ जाता है।

यदि सही इलाज ना हो पाने के कारण ऐसा रोगी मर जाता है तो ओझा सोखा या मौलवी कह देते हैं की बहुत बड़ा भयंकर था इसलिए हम उसे जीत नहीं पाए । वह अभी और भी खतरा पैदा कर सकता है । अतः उसकी शांति के लिए तंत्र-मंत्र करवा लीजिए।

इस प्रकार अंधविश्वासी लोग जीवन भर उसके ठगाई में आते रहते हैं और चालाक व धूर्त लोग उन्हें ठग कर अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं।

अंधविश्वास से ग्रस्त साधारण जनता यह मानती है कि भूत प्रेत या शैतान आदि नाम की कुछ अदृश्य शक्तियां होती हैं जो कुछ व्यक्तियों पर अपना अधिकार जमा लेती है । उन्हें परेशान करती हैं या उनसे मनमाने संभव अथवा असंभव चमत्कार कार्य करवाते हैं।

देखा गया है कि भूत प्रेत से पीड़ित व्यक्ति अपने होश में नहीं रहता है और यह अदृश्य शक्तियां उसे पर सवार हो कर उसके शरीर में प्रवेश करके उसके माध्यम से अपनी बात कहती रहती हैं।

कभी-कभी देखा गया है कि किसी घर में भी भूत प्रेत ब्रह्म या जिन्न शैतान अपना अधिकार जमा लेते हैं। ऐसे घर में अनेक अनहोनी , आश्चर्यजनक घटनाएं होने के बात भी कही जाती हैं। यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति ऐसी घटनाओं के गहन जांच करें तो उसके रहस्य की पोल खुलने में कुछ भी देर नहीं लगती है।

देखा गया है की कभी-कभी तो घर को भूतहा समझ कर उसमें रहने वाले लोग उस घर को छोड़ देते हैं और उसे आधे पौने दाम पर बेच देते हैं। इससे घर बेचने वाले को बहुत बड़ी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है ।

ऐसा घर खरीदने वाला यदि अंधविश्वासी होता है तो घर शुद्ध कराने के लिए ओझा सोखा या मौलवी की शरण में जाता है । वे लोग उसे मोटी रकम ऐठकर उसे अच्छा खासा चूना लगाते हैं।

हमारे जानकारी में भी हमारे गांव में ऐसी कई घटनाएं हो चुके हैं। भूत प्रेत के शिकार अशिक्षित ही नहीं बल्कि शिक्षित व्यक्ति भी हो जाते हैं । उसका कारण यह है की बचपन से उन्हें भूत प्रेत की कहानी सुनाई जाती हैं ।

अमुक स्थान पर न जाना वहां भूत प्रेत रहते हैं। इस प्रकार के निर्देश दिए जाते हैं। यह संस्कार जीवन भर उनके मन में बना रहता है । शिक्षा के माध्यम से इस प्रकार के अंधविश्वास को दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है । यही कारण है कि शिक्षित लोग भी भ्रम के शिकार होकर अपना धन गवा बैठते हैं।

ऐसे शिक्षित अंधविश्वासी लोगों के लिए ही अशिक्षित लोग भी कहते हैं कि पढ़े-लिखे लोग भी भूत-प्रेत मानते हैं इसलिए भूत-प्रेत अवश्य होता है।

अक्सर देखा गया है कि भूत प्रेत के मानने वाले परिवारों में कलह ज्यादा होती है। जब किसी व्यक्ति को कोई मानसिक या शारीरिक रोग हो जाता है और वह उस रोग का कारण भूत लीला या प्रेत लीला समझ कर उसके निवारण के लिए किसी ओझा सोखा या मौलवी आदि के पास जाता है तब उसे ठीक कर देने का दावा करने वाले ओझा सोखा मौलवी आदि उसे कहते हैं कि तुम्हारे अमुक निकट संबंधी भाभी भाई पड़ोसी या कोई स्त्री पुरुष ने भूत कर दिया है।

ऐसा कह कर भूत उतारने का पेसा करने वाले पीड़ित व्यक्ति या उसके परिवार से खूब धन तो ऐंठते ही हैं। निकट के रिश्तों में भी सदा सदा के लिए स्थाई दरार पैदा कर देते हैं।

अक्सर देखा गया है कि भूत प्रेत के नाम पर कमाई करने वाले ना जाने कितने परिवारों में फूट डालकर घर तबाह कर दिया।

वास्तव में भूत प्रेत और जिन्न शैतान आदि नाम से प्रचलित अदृश्य काल्पनिक शक्तियों की मान्यता राष्ट्र , समाज, परिवार के लिए बहुत ही हानिकारक है। ऐसी मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक, शास्त्रीय या फिर तार्किक आधार नहीं है।

आता समाज के प्रबुद्ध वर्ग को चाहिए कि ऐसी मान्यताओं को वह लोगों में समझाने का सही रूप में प्रयास करें। बच्चों के अंदर भूल से भी इस प्रकार की चर्चा ना करें। विद्यालयों में भूत प्रेत की सत्यता एवं असत्यता पर चर्चा की जाए। जो बच्चे गंडे ताबीज आदि पहन कर आए हो उनकी वास्तविकता उन्हें बताई जाए ।
जिससे वह बचपन से ही उनके अंदर एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो सके।

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जैसा कि आम धारणा है की भूत प्रेत लोगों को परेशान करते हैं। कुछ लोग शास्त्रों का सहारा लेकर अपना उल्लू सीधा किया करते हैं। ऐसे में भूत प्रेत के बारे में हमारे शास्त्रों में क्या कहा गया है आज इस पर चिंतन करेंगे-

उपनिषद् आदि में ‘भूत’ शब्द प्राणी अथवा जीव के लिए प्रयुक्त हुआ है। अतीत , विगत या बीते समय के लिए भी भूत का प्रयोग होता है। स्थूल जगत के निर्माण में अव्यक्त प्रकृति से घनीभूत हुए पंच तत्वों को भी पंच महाभूत कहा जाता है। जो प्राणी मृत्युपरांत सूक्ष्म शरीर धारण कर प्रेत योनि में जाते हैं उन्हें भी भूत कहते हैं।

गीता २.२८ में भगवान कहते हैं– हे भारत ! सभी प्राणी जन्म से पूर्व अव्यक्त हैं ,बीच में व्यक्त होते हैं और मृत्युपरांत अव्यक्त हो जाते हैं।
ईशोपनिषद -७ में कहा गया है — जिस साधक को सभी प्राणी आत्मभूत अनुभूत होते हैं , उस एकत्व की अनुभूति करने वाले साधक को मोह शोक नहीं रहता ।

गीता १५.१६ में जीव के रूप में भूत का उल्लेख किया गया है-
वस्तुत संसार में दो प्रकार की सृष्टि है क्षर और अक्षर। सभी परिवर्तनशील यहां तक जीव जगत भी क्षर है किंतु जो सदैव एक सा रहता है कूठस्थ है वह अक्षर है।
प्रख्यात कोष ग्रंथ वाचस्पत्यम के अनुसार-
पंचानां तत्वानाम समाहार: पंचसु भूतेशु स्वरोदय:।
यहां भूत का अर्थ तत्व से लिया गया है।

भूत शब्द ‘भू’ धातु में ‘क्त’ प्रत्यय होने से बनता है . इसलिए भूत शब्द का अर्थ हो चुका या बीता हुआ होता है ।स्पष्ट है कि जो पहले होकर फिर ना रहे उसका नाम भूत है। भूत का अर्थ बीता हुआ होने के कारण ही बीते हुए समय को भूतकाल कहा जाता है।

यदि कोई व्यक्ति पहले किसी पद पर रहा हो और बाद में ना रहे तो उसे भूतपूर्व पहले हो चुका कहते हैं। जैसे- भूतपूर्व प्रधान भूतपूर्व मंत्री भूतपूर्व मुख्यमंत्री आदि।

उपरोक्त उदाहरण से हमने देखा कि भूत शब्द का अर्थ कहीं भी मृत व्यक्ति से नहीं लिया गया है। परंतु फिर भी हजारों वर्षों से एक अदृश्य भय भूत के बारे में समाज में भर दिया गया है।

कभी-कभी हिस्टीरिया नामक रोग होने पर उसे भूत प्रेत मान लिया जाता है। क्योंकि इस तरह के रोग ग्रस्त स्त्री को दूसरे लोग बात करते और संकेतों से सहज अपनी और आकृष्ट कर लेते हैं। इसी कारण ओझा सयाने आदि लोग जब इस रोग को भूतादि का आक्रमण बता कर रोगी से कोई प्रश्न करते हैं तो वह उनकी हां में हां मिलाती चली जाती हैं।

हिस्टीरिया रोग मुख्त: असफल प्रणय संबंध, प्रेमी से मिलने में बाधा एवं पुरुष का लंबे समय तक स्त्री से दूर रहने पर भी यह रोग हो जाता है ‌।

भूत प्रेत की समस्या बंध्या स्त्री में ज्यादा हो पाए जाते हैं। यदि कोई होती स्त्री भूत प्रेत से ग्रस्त हो तो बच्चे होने पर ठीक हो जाती है। मेरे देखे ऐसी बहुत सी स्त्रियां ठीक हुए हैं। बच्चे होने के पूर्व उनकी रात रात भर ओझाई होते थे, मियां मजार दरगाह आदि का चक्कर लगाती थी लेकिन बच्चा होने के पश्चात वह पूर्ण स्वस्थ रहने लगे।

भूत प्रेत की समस्या प्रायः धन संपन्न एवं सुविधा भोगी स्त्रियों को ज्यादा होती है। कामुक, आलसी अथवा कमजोर स्त्रियों को ही भूत प्रेत की समस्या ज्यादा होती है। जिन औरतों को घर गृहस्थी के काम ज्यादा नहीं करना पड़ता , जो अपना समय बनाव श्रृंगार एवं गप शप में ज्यादा बिताते हैं ।

जो अधिक भावुक , ईर्ष्यालु और उत्तेजक स्वभाव की होती हैं। वे इस रोग की शिकार शीघ्र बन जाते हैं । गरीब, श्रमिक अथवा घर गृहस्थी के काम में लगे रहने वाली औरतों की यह समस्या बहुत कम होती है।

प्रायः देखा गया है कि भूत प्रेत की समस्या से ग्रसित रोगी की जीवनचर्य उन्मादी जैसी हो जाती है। इससे रोगी के अंतःकरण में व्याप्त अनसुलझे डर भय तथा भावनात्मक आवेगों के ज्वार के चलते उनका मन असाधारण रूप से उत्तेजित और असंतुलित हो जाता है। साथ ही उसके संवेदनाओं, नाड़ी तंत्र तथा पाचन तंत्र के क्रियाकलापों में भी असामान्य बदलाव दिखलाइ पड़ता है । हालांकि शारीरिक रूप से वह बिल्कुल स्वस्थ होती है।

भूत प्रेत के वहम से ग्रसित स्त्री जब अकेले या अपने परिजनों से दूर होती है या गहरी निद्रा में होती है तो सामान्य रहती हैं। लेकिन जैसे वह अपने परिजनों के बीच आती है वैसे ही उनमें उन्माद के लक्षण प्रकट होने लगता है।

यह इस रोग का मुख्य लक्षण है। क्योंकि भूत प्रेत के वहम से ग्रसित स्त्री जाने अनजाने जो कुछ भी करती है लोगों को दिखाने हेतु करती है । जबकि कभी-कभी तो उसके स्वयं के लिए भी कष्ट दायक या घातक सिद्ध होता है।

देखा गया है कि भूतोंन्माद से ग्रसित रोगी अक्सर बचपना करती है । वह चाहती है कि लोग उसे बीमार मानकर उसके साथ काम करें । बीमारी का बहाना करके वह दूसरों पर अधिक आश्रित होना चाहता है तथा खुद मेहनत से बचता है ।

उसका भोलापन उसके लिए ढाल बन जाता है। ऐसे रोगी स्वार्थी तथा आत्म केंद्रित होने लगते हैं । किंतु उनकी कोशिश स्वयं को एक सामाजिक धार्मिक कार्यकर्ता तथा भावुक प्रकृति के व्यक्ति के रूप में पेश करने की होती है।

इस प्रकार से हम देखते हैं कि भूत प्रेत को ऊपरी बवाल नहीं बल्कि एक प्रकार का मानसिक रोग है जिसका सही रूप से यदि इलाज किया जाए तो वह ठीक हो जाता है। अतः आवश्यकता है कि हमें भूत प्रेत के नाम पर खुलने वाले दुकानों से बचना चाहिए।

अतः भूल से भी ना तो हमें कभी किसी ओझाई सोखाई के चक्कर में फंसना चाहिए। ना ही मजारों दरगाह आदि के चक्कर में फंसना चाहिए। ऐसे लोगों का उचित इलाज कराना चाहिए।

नियमित रूप से योगासन, प्राणायाम ध्यान एवं गायत्री मंत्र आदि के जप से यह बीमारी जड़ से ठीक हो जाती है।

इसलिए हमें चाहिए कि हम स्वयं भूत प्रेत के वहम से बचे और अपने समाज को बचाने का प्रयास करें।

 

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समाज में व्याप्त रूढ़ियों और पाखंड के नाम पर जहां देखो वहीं पर नई नई दुकानें खुली हुई है। उनमें भूत प्रेत आदि के नाम पर भी अनेकानेक दुकानें हैं। इसमें भी भूत प्रेत, ब्रह्म, पिचास, चुड़ैल, जिन्न, शैतान आदि नाम से लोगों को भ्रमित कर लोगों को बेवकूफ बनाया जाता है।
आइए हम आपको बताते हैं कि वह क्या होते हैं —

१-भूत — जैसे कि पूर्व में बता चुके हैं कि भूत शब्द का अर्थ प्राणी होता है। भूत का अर्थ बीता हुआ होने के कारण ही बीते हुए समय को भूतकाल कहा जाता है।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि भूत शब्द का अर्थ जीवित प्राणी से लिया जाता है, मृतक व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है।

२–प्रेत
प्रेत का अर्थ मरा हुआ व्यक्ति से लिया जाता है। मुख्यतः प्रेत एवं पिचाश योनियों केवल काल्पनिक है, इनका कोई अस्तित्व नहीं होता है। सच यह है कि दुनिया में प्रेत नाम की कोई योनि नहीं होती हैं।

३-चुडैल
भूत को स्त्रीलिंग में भूतनी कहते हैं। गंवई भाषा में उसे ही चुड़ैल कहते हैं। पहले चुड़ैल शब्द का अर्थ झगड़ालू स्वभाव के और गंदे रहन-सहन वाली स्त्री के लिए किया जाता था। बाद में अंधविश्वास से लोगों ने भूतनी के लिए ‘चुड़ैल’ शब्द का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया।

किसी कारण से देखा गया है कि भयभीत हो जाने पर मनुष्य अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है । ऐसी स्थिति में उसकी कल्पना के अनुसार भ्रम वश उसे कोई आकृति भी दिखाई पड़ सकती है । यदि यह आकृति स्त्री की होती है तो वह व्यक्ति उसे चुड़ैल समझ लेता है ।
झाड़-फूंक करने वाले भी उसे चुड़ैल ने पकड़ लिया ऐसा कहने लगते हैं।

तर्कशील और बुद्धिमान लोग ऐसी किसी भी काल्पनिक शक्ति से भयभीत नहीं होते हैं । ऐसे लोगों को भूत प्रेत चुड़ैल आदि पकड़ते ही नहीं क्योंकि वह जानते हैं कि ऐसी कोई अदृश्य शक्ति होती ही नहीं।

बचपन में हम लोगों ने सुना है कि चुड़ैल सफेद कपड़े पहने होती हैं और उसके पैर उल्टा होता है आदि। ऐसी छवि बड़े होने पर भी मन में बने रहते हैं जिसका प्रभाव आजीवन हमें झेलना पड़ता है।

मैंने देखा है हमारे गांव में हिंदुओं में भूत प्रेत आदि उतारने के लिए कुछ सयाने लोग होते थे जो किसी के भूत प्रेत होने पर उतारा करते थे।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि चुड़ैल आदि मानसिक वहम के अलावा कुछ नहीं होता है।

४-पिचास —
अधिकांश देखा गया है कि ओझा सोखा आदि लोग भूत प्रेत की जगह पिचाश आदि कहकर उसे और डरा देते हैं।
पिशाच का अर्थ मुख्य रूप से मांस खाने वाले को कहते हैं। पूर्व काल में जो व्यक्ति मांस खाता था उसको लोग पिचाश कहा करते थे। वास्तविकता यह है कि पिचाश नाम की कोई योनि नहीं होती है।
वास्तविक पिचाश तो वह ओझा, सोखा या तांत्रिक स्वयं है जो बकरा आदि पशुओं की बलि चढ़ाते हैं उसका मांस स्वयं खाते हैं। समाज को चाहिए कि वह ओझा सोखा , तांत्रिक आदि पिचाशो से बचकर रहे।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि सभी मांस मछली अंडे आदि मांसाहार को खानें वाले ही पिचास है।

५-ब्रम्हा —
देखा गया है कभी-कभी ओझा और तांत्रिक लोग भूत के स्थान पर ब्रह्म का पकड़ना अथवा ब्रह्मा का उपद्रव होना भी बताते हैं।
ईश्वर को भी ब्रह्म कहा जाता है। सभी धार्मिक ग्रंथो में ब्रह्म शब्द का प्रयोग ईश्वर या परमात्मा के ही अर्थ में हुआ है।

इसमें अब विचारणीय बात यह है कि क्या परमात्मा किसी व्यक्ति के ऊपर आने अथवा सवार होता है। देखा गया है कि लोगों को ठगने वाले लोग चालाकी से यह कहते हैं कि जब कोई ब्राह्मण जाति का व्यक्ति किसी दुर्घटना के कारण या हत्या कर दिए जाने से मरता है तब वह ब्रह्म या ब्रह्म राक्षस की भूत जैसी अदृश्य योनि में चला जाता है।

अतः यह स्पष्ट होता है कि ब्रह्मा नाम की कोई भूत जैसी अदृश्य शक्ति नहीं होती है। यह सब मनुष्य को बहकाने के सिवा कुछ भी नहीं है।

बहुत आश्चर्यजनक बात यह है कि अंधविश्वासी हिंदुओं के ऊपर ही भूत प्रेत जिन्न शैतान आदि का प्रकोप होता है किंतु मुसलमान के ऊपर भूत प्रेत का प्रकोप कभी नहीं होता है। यही कारण है कि मजार दरगाह आदि पर भी हिंदू ही सबसे ज्यादा भूत प्रेत आदि उतरवाने जाता है।

इसका कारण यह है कि मुसलमान मौलवी या मुल्ला के पास हिंदू अपना दुखड़ा रोने जाता है और कोई परेशानी होते हैं तो उससे राय लेता है। लेकिन कोई भी दुनिया का मुसलमान किसी भी हिंदू ओझा सोखा या तांत्रिक से कभी कोई राय नहीं लेता ,ना ही उसे अपनी कोई परेशानी दिखाता या बताता है।

इस प्रकार से हम देखते हैं कि हिंदू बिना पेंदी के लोटे की तरह किसी भी तरफ लुढ़क सकता है । उसे जो चाहे जैसा भरमा देता है और वह भरम जाता है।

इसी प्रकार से समाज में शहीद बाबा नाम से विभिन्न प्रकार की मजारे बनी हुई हैं। जहां पर या भ्रम फैला दिया जाता है कि इसकी पूजा करने और इस पर चादर चढ़ाने से शहीद बाबा खुश होकर मांगी मुरादे अर्थात मनोकामनाएं पूरी करते हैं ।यदि वे नाराज हो जाए तो हानी भी पहुंचा सकते हैं । किसी किसी व्यक्ति के ऊपर शहीद बाबा की सवारी आने का भी नाटक किया जाता है।

अक्सर देखा गया है कि यह मजारे अवैध जमीन का कब्जा करने के लिए या चढ़ावा हड़पने के लिए झूठी ही बनवाया जाता हैं।

मुसलमानों के मत में अपने मजहब को बढ़ाने के लिए युद्ध जिहाद करना शबाब पुण्य माना जाता है। जो मुसलमान इस प्रकार के युद्ध में अन्य मत वाले को को मारने में सफल हो जाते हैं वे गाजी कहे जाते हैं और जो ऐसे युद्ध में मार दिए जाते हैं वे शहीद कहे जाते हैं।

ऐसे ही प्रसिद्ध मजार उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में गाजी मियां की है और उसी का छोटा रूप प्रयागराज के सिकंदरा में है। जहां पर कुछ हिंदुओं ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे मच्छर टूट पड़े हो। उन्हें कभी आभास भी नहीं होता है किस कुछ होता भी है या नहीं होता है। बस भेड़ चाल की तरह पीछे-पीछे लगे रहते हैं।

ऐसी मजारों में देखा है कि जहां वे दफनाया जाते हैं उसके कब्र पर पक्की मजार बनवा कर धूर्त मुसलमान लोग उसे पूजना शुरू कर देते हैं और नादान हिंदुओं से पुजवाना प्रारंभ कर देते हैं । उसके महत्व को बनाए रखने के लिए शहीद बाबा की सवारी आने के स्वांग किए जाते हैं । इस प्रकार की पूजा से कुछ होता भी है या नहीं कोई हिंदू इस पर कभी विचार नहीं करता।

मूर्ख हिंदुओं को सोचना चाहिए कि जो व्यक्ति जीवित रहने पर अपने शत्रुओं द्वारा मारा गया वह मरने के बाद किसी की क्या बना या बिगाड़ सकता है। लेकिन मनुष्य जब एक बार इस प्रकार के भ्रम में पड़ जाता है तो उसे निकलना बड़ा मुश्किल लगता है।

अक्सर देखा गया है कि भूत प्रेत को अपना व्यवसाय का आधार बनाने वाले ओझा सोखा और मौलवी आदि लोग अपने भक्तों को यह समझाते हैं कि तर्क नहीं करना चाहिए ।

तर्क वितर्क करने वाले की बड़ी हानि होती है। जो लोग ऐसे विषयों पर तर्क करते हैं उनको अविश्वासी और श्रद्धा हीन कह कर उनका मजाक उड़ाया जाता है ।इसीलिए धर्मभीरु लोग तर्क नहीं करते । ओझा सोखा के चमत्कार एवं भूत-प्रेत के अस्तित्व में आंख बंद करके विश्वास करते हैं।

समाज के प्रबुद्ध वर्ग को चाहिए कि वह स्वयं ऐसे अंधविश्वासों से बचे एवं अन्य लोगों को बचाएं।

शेष अगले अंक में

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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