भाग -१ 

“यह भूत बहुत बलवान है इसके लिए सवा मन आटा, बकरा, बकरी ,मुर्गा ,शराब आदि देना पड़ेगा। इसके दिए बिना भूत छोड़कर के नहीं जाएगा।” एक ओझा ने जो कि अपनी बच्ची का भूत प्रेत उतरवाने आया था उससे कहा।

उसकी बच्ची सुनीता अक्सर बीमार रहती थी। सुनीता की अभी नई-नई शादी हुई थी। शादी को हुए 6 महीना ही बीते थे कि ससुराल में एक बार बेहोश हो गई। उसे परिवार में भूत प्रेत आदि बहुत मानते थे। यही कारण है कि सुनीता का किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज की अपेक्षा गांव के एक ओझा को दिखाया।

जहां पर ओझा ने बताया कि इसको ब्रह्म ने पकड़ लिया है बिना मुंडी लिए नहीं छोड़ेगा। इसको भागने के लिए जीव हत्या करनी पड़ेगी!” सुनीता के ससुराल के लोग एक नंबर के अंधविश्वासी प्रकृति के थे। जिनकी पीढ़ी दर पीढ़ी अंधविश्वासों में गुजर गए थे।

उसकी ससुराल में वार्षिक पूजा के नाम पर बकरा, बकरी ,मुर्गा आदि काटकर देवी देवता के नाम पर भोज चलता था। अभी वह नई नवेली दुल्हन थी। इसलिए किसी प्रकार का प्रतिकार नहीं किया । उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था कि किसी जीव की हत्या की जाए,।

उसे थोड़ी राहत महसूस हुई। उसकी बेहोशी का कारण देखा जाए तो ऑक्सीजन का अभाव है। शादी के बाद जिस जगह उसे रखा गया था वह घर के पीछे का भाग था जो पूर्ण रूप से ढका हुआ था। उसमें किसी प्रकार की खिड़की वगैरा नहीं थी। अधिकांश समय उसे घर के अंदर ही रहना पड़ता था। उसका मन बहुत उलझन में रहता था।

इसी उलझन में एक दिन वह बीमार हो गई और उसके घर परिवारों ने स्थित का सही से जायजा न लेकर के उसे ओझाओं के चक्कर में फंसा दिया। भारतीय समाज में आज भी भूत प्रेत के चक्कर में हजारों स्त्रियों का धन और धर्म दोनों गवा रहे हैं।

यह ओझा सोखा इतने मक्कार किस्म के लोग होते हैं की सबसे पहले बिना शराब पिए, बकरा बकरी मुर्गा को चढ़ाए इनका भूत भागता ही नहीं। इतना चढ़ाने के बाद भी जब भूत प्रेत की नौटंकी नहीं खत्म होती तो अन्य बहाने बनाने लगते हैं।

क्या करें हमने तो बहुत कोशिश की अपनी जान लगा दिया, लेकिन भूत इतना बलवान है, भाग नहीं रहा फिर कोई नया बहाना बनाते हैं अब निकारी करनी पड़ेगी ,किसी देवथान में जाकर के बैठाना पड़ेगा आदि आदि।

सच यह है कि इन ओझाओं सोखाओ में कोई ताकत नहीं होती है। यह सब मात्रा पीढ़ी दर पीढ़ी से चला आ रहा एक प्रकार का अंधविश्वास है। कई कई स्त्रियों को तो भूत प्रेत कुछ नहीं पकड़ा रहता ,मात्र बहानेबाजी किया करती हैं या फिर अपने घर परिवार पति को परेशान करने के लिए नौटंकी करती हैं जो कि उनकी मानसिक समस्या है ।इसमें किसी भी भूत प्रेत आदि कि कोई बात नहीं होती।

दोस्तों! जीव को शरीर छोड़ने के बाद अन्यत्र भटकने की कोई व्यवस्था नहीं है ।क्योंकि जीव को अन्य जन्म लेने के लिए एक दिन से 12 दिन के भीतर यह सारी प्रक्रियाएं पूरी हो जाती हैं । इस प्रकार भी किसी को दुख देना, कष्ट देना कैसे संभव हो सकता है?

अर्थात भूत प्रेत आदि की कोई संभावना नहीं रह जाती है। जो लोग कहते हैं की एक्सीडेंट में मरे हुए की आत्मा भटकती है, भूत प्रेत बनकर उनकी आत्मा फिर जन्म लेती है, तो ऐसा कुछ नहीं होता है। व्यक्ति एक्सीडेंट में मरे या व्यक्ति व्याधि से मरे।आत्मा शरीर तभी छोड़ती है जब उसके योग्य शरीर नहीं रह जाती हैं।

अतः हमें सत्यता को समझना होगा ।स्त्रियों में भी प्राचीन काल में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि किसी को भूत प्रेत की समस्या रही हो । इतिहास के प्रमाणों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि मुगलकाल के समय में जब कोई राजा ज्यादा लंपट हो जाता था तो लोग अपनी कन्याओं की अस्मिता की रक्षा के लिए उन्हें भूतोंन्माद का नाटक सिखा देते थे और उसके भीतर कोई भूत -प्रेत, दुष्ट आत्मा पिचास , राक्षस प्रवेश कर गया है इसका प्रचार भी किया जाता था जिससे लंपट राजा ऐसे कन्याओं को परेशान नहीं करता था।

भूत प्रेत की समस्या जिन स्त्रियों को है यह सब मानसिक व्याधियों हैं जिसका ठीक से उपचार किया जाए तो वह ठीक हो जाता है स्त्रियों को बुटादा की समस्या का कारण प्रेम का अभाव है यह भूत का नाटक करके अपने पति या परिवार का प्रेम पाना चाहते हैं माताजी ने स्त्री को भूत-प्रेरताद के समस्या हो उन्हें खूब प्रेम करें उसके दुख दर्द पीड़ा को समझने का प्रयास करें भूलकर भी किसी ओझा सोखा, मियां मजार ,दरगाह पर न जाए। उसका सही प्रकार से मानसिक उपचार करायें।

वर्तमान समय में देखा जाए तो हमारा पूरा समाज अंधविश्वासों में जगड़ा हुआ है। भोली भाली हिंदू समाज के बहू बेटियां इन ओझाई सोखाई मजार दरगाह आज की पूजा के चक्कर में अपना दीन धर्म सब गवा रहे हैं। देखा गया है कि अधिकांश हिंदू ओझा सोखा मजार आदि की पूजा किया करते हैं। कोई व्यक्ति मजार दरगाह पर ना भी जाना चाहे तो यह ओझा सोखा इतने दुष्ट होते हैं के उसे भी डर भय दिखाकर जाने के लिए मजबूर कर देते हैं।

पूर्व काल में गांव में शिक्षा का अभाव था। जिसके कारण गांव में जब कोई बीमार होता था तो लोग डॉक्टर के यहां जाने की अपेक्षा ऐसे ओझा गुनिया के पास जाया करते थे। आपने देखा होगा कि यह लोग ऊंट पटांग पूजा आदि करके लौंग को रोगी को खाने के लिए देते हैं।

लौंग दर्द नाशक होता है। यदि यदि सामान्य दर्द में भी लौंग को मुख में रख लिया जाए तो दांत दर्द , सिर दर्द चक्कर आने में हल्की सी राहत महसूस होगी। इसमें किसी देवी देवता का हाथ नहीं है कि उसने ठीक किया है।

इसका दूसरा कारण व्यक्ति की मन:स्थित होती है। वह जैसी कल्पना करता है उसके साथ वैसा ही होने लगता है। जिस व्यक्ति के मन में यह बैठ गया हो कि हमारी बीमारी भूत-प्रेत के पकड़ने के कारण हुई है और ओझाई कराएंगे तो ठीक हो जाएगा।

तो उसके साथ वैसा ही होने लगता है। यह सब व्यक्ति के मन में बैठा हुआ विश्वास है जो उसे ठीक कर देता है। यह सारा का सारा खेल मन का है। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। इसमें किसी भी प्रकार के ओझा सोखा या किसी दैवी शक्ति का कोई हाथ नहीं होता।

दूसरी बात है यह है कि भूत का संबंध किसी मरे हुए व्यक्ति से नहीं है। श्रीमद् भगवत गीता में कहा गया है–

अहमात्मागुडाकेश सर्व भूताशय स्थित “( गीता- १०/२०)

अर्थात मैं सब भूतों (प्राणियों) के भीतर स्थित हूं।
यहां पर भूत का अर्थ जीवित सभी व्यक्तियों से लिया गया है ना कि मरे हुए मुर्दे से। संपूर्ण गीता, श्रीमद् भागवत ,वेद ,उपनिषद् आदि में कहीं भी भूत का अर्थ मृतक व्यक्ति से नहीं लिया गया है। अब हम कुछ और अर्थ देखते हैं जिससे समझ में आ जाए कि सत्य क्या है असत्य क्या है-

समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठंति परमेश्वरम् । ( श्रीमद् भगवत गीता १३/२७)
अर्थात समान रूप से परमेश्वर सभी भूतों ( प्राणियों) में स्थित है।

ईश्वर सर्वभूतानां ह्रदयेशर्जुनतिष्ठति। ( श्रीमद् भगवत गीता १८/६१)
अर्थात अन्न से सभी भूत प्राणी उत्पन्न होते हैं और वर्षा से अन्न उत्पन्न होता है।

उपर्युक्त श्लोक में भूत का अर्थ जीव- जगत ,पदार्थ जगत और पंच महाभूत (पृथ्वी जल अग्नि वायु और आकाश) से लिया गया है।

उपर्युक्त सभी उदाहरणों में कहीं भी भूत का अर्थ मृतक से नहीं लिया गया है । फिर क्या कारण है कि लाखों करोड़ों की संख्या में लोग भूत प्रेत के चक्कर में अपना धन धर्म मान सम्मान सब गवा रहे हैं ।यह सब बहकावे की बातें हैं कि किसी ओझा सोखा दरगाह मजार आदि की पूजा से भूत प्रेत आदि ठीक होता है।

आज जहां देखो वही मजार दरगाह के साथ ही सड़क के किनारे कोई पीपल का वृक्ष हो तो वहां भी लोग लंगोट कलावा आदि बाध कर पूजना शुरू कर देते हैं। मूढ़ताबस लोग यह कभी नहीं जानने का प्रयास करते कि उनकी पूजा करने से कुछ होता भी है या नहीं।

बस भीड़ देख नहीं की पूजा शुरू कर देते हैं ।औरतें इसमें कुछ ज्यादा ही आगे होती हैं ।भूत भी उनको ही ज्यादा पकडते हैं। सत्य तो यह है कि भूत नाम की दुनिया में कोई कुछ नहीं होता है।जो मर गया वह क्या करेगा भूत बीते हुए समय को कहते हैं।

ऐसी स्थिति में समाज को जागृत करने की आवश्यकता है।हमें सत्य का साथ देना चाहिए ।यदि इसमें कोई सत्यता हो तो मानना चाहिए नहीं तो छोड़ देना चाहिए।

हजारों वर्षों के मान्यताएं सच है कि एक दिन में खत्म नहीं होगी लेकिन जैसे-जैसे समाज शिक्षित हो रहा है।इस प्रकार की मान्यताएं भी धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। इसके लिए आवश्यकता है कि विद्यालयों में बच्चों के समक्ष इस प्रकार की बातें समझाईं जाए और उन्हें बचपन से ही ऐसी मान्यताओं से दूर रखने के लिए प्रेरित किया जाए।

कितना सत्य कितना असत्य – भाग २

प्रिय दोस्तो —
हमें यह जानकर आश्चर्य होता है कि भूत प्रेत के संबंध में समाज में इतनी भ्रांतियां व्याप्त है कि अधिकांश मनोरोगियों को विशेषकर स्त्रियों पर भूत प्रेत का साया मानकर तंत्र-मंत्र किया जाता है। इस प्रकार से हम देखते हैं कि विभिन्न धार्मिक स्थल मजार आदि पर मनोरोगी झूमते हुए, खेलते हुए, पटकी खाते हुए बहुत आसानी से नजर आते हैं।

बाकायदा मुकदमे की तारीख पड़ती है, पेशी होती है , सवाल जवाब होते हैं और जजमेंट के उद्घोष किए जाते हैं । लेकिन एक बात हम स्पष्ट करते चले कि यह सब मात्र बकवास, निराधार के अलावा कुछ नहीं है । ना तो इस प्रकार की नौटंकी करने वाले मौलवी के पास कोई शक्ति होती है और ना मनोरोगी के ऊपर कोई परकाया का प्रभाव ।

समाज में इस प्रकार की मान्यताएं जड़ जमाए हुए हैं कि विद्वान से विद्वान व्यक्ति भी इस दृश्य को देखकर खुद को भ्रमित होने से नहीं रोक पाता और कहीं ना कहीं इस प्रकार की बातों को मानने के लिए विवश हो जाता है कि अवश्य ही रोगी पर किसी भूत प्रेत का साया का प्रभाव है ।

वरना रोगी और मौलवियों के साथ इस प्रकार की वार्ता क्यों होती है। यह कौन है जो रोगी के भीतर से बोलता है, मौलवी से लड़ता है, गाली -गलौज करता है, क्यों एक रोगी इस बुरी तरीके से पटकी खाता है कि देखने वाले के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

तंत्र मंत्र की भाषा में रोगी पर इसे भूत प्रेत का साया माना जाता है। लेकिन आश्चर्यजनक यह लगता है कि रोगी खुद यह मानकर चलता है कि उस पर किसी परकाया ने अपना कब्जा जमा लिया है और इस बात को बल मिलता है, हमारे परंपराओं से और भूत के नाम पर कुकुरमुत्तों की तरह उग आए गली-गली में मजार -दरगाहों से जहां का मौलवी रोगी को समझाता है कि तुमको किसी शक्ति ने अपने बस में कर रखा है।

एक बार मैंने रात्रि के समय प्रयागराज के भूलई के पूरा नामक स्थल पर गया जहां तीन-चार दिनों का मेला लगता है। वहां पर भूत प्रेत से ग्रसित स्त्रियां रात्रि में भी खेल रहे थे जो कि अधिकांश नवयुवती ही थी। पुरुष नाम मात्र के थे। वास्तव में देखा कि किसी स्त्री को भूत -प्रेत पकड़े ही नहीं है। वे मात्र अधिकांश मनोरोग के शिकार हैं ।

जब वास्तविक रूप से मनोरोगी पर किसी परकाया का प्रवेश होता ही नहीं तो स्वाभाविक रूप से प्रश्न पैदा होता है कि मनोरोगी इतना भ्रमित कैसे हो जाता है कि वह खुद पर किसी शक्ति का ग्रहण महसूस करता है और उसी प्रकार की हरकतें क्यों करने लगता है? कदाचित किसी विशेष स्थान पर पटकिया खाना, दौड़ना, भागना , मौलवी या किसी अन्य शक्ति से लंबे-लंबे बातें करना और यह दोहराने की मैं इसे नहीं छोडूंगा, इसे मार डालूंगा इत्यादि।

दोस्तों! जीवन में प्रत्येक व्यक्ति प्रेम का भूखा होता है! प्रेम का अभाव है मनो रोग को जन्म देने का कारण बनता है ।जिसे समाज में भूत प्रेत का भ्रम फैला कर बहू बेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया जाता है। मजार आदि की पूजा करना हिंदुत्व के खिलाफ हैं। यदि कोई हिंदू किसी मजार दरगाह पर जाता है तो वह धर्म भ्रष्ट हो जाता है।

उसका भूत उतरे या ना उतरे लेकिन ऐसी जगह जाने पर वह एक ऐसे जंजाल से में फंस जाता है कि वह जीवन भर इससे नहीं निकल पाता है। मैंने अपने गांव में हिंदुओं में देखा है कि पीढ़ी दर पीढ़ी मजार पूजा का ऐसा डर बैठा दिया गया है कि आधुनिक युवा पीढ़ी भी भ्रमित हो चुकी हैं।
इसलिए समझदार लोगों को चाहिए कि भूल से भी वह मजार दरगाह की पूजा ना करें। अपनी बहू बेटियों को भूलकर भी ऐसी जगह नहीं भेजना चाहिए।

देखा गया है कि इस प्रकार के रोगी विवशता वश मौलवी मजार की शरण में जाता है । वहां पर रोगी को समझाया जाता है कि तुम पर वशीकरण हो चुका है। किसी शैतान ने तुम्हें अपने वश में कर लिया है । कोई भूत -प्रेत ,जिन्न, चुड़ैल आदि ने कब्जा जमा लिया है।

इस प्रकार के रोगी यह तो महसूस करता है कि मेरी मानसिकता बाधित हो चुकी है । तो कम धैर्य वाले या कहें भूत प्रेत आदि में यकीन करने वाले स्वयं यह मानने को विवश होने लगते हैं कि अवश्य ही मेरे ऊपर वशीकरण हो चुका है।वह उक्त स्थल का वातावरण देखता है ।वहां पहले से उस जैसे मरीज झूम रहे हैं, खेल रहे हैं हूंकार भर रहे हैं, शक्तियों से बातें कर रहे हैं ।इस प्रकार देखा देखी मनोरोगी भी झूमने लगता है।

मनो रोग की खास बात यह है कि रोगी जिस ऐंगल से सोचता है कि मुझे ऐसा हो गया है ,लगता है तो उसे वैसे ही अनुभूतियां होने लगती है। जैसे कि रोगी माने की मुझ पर किसी शक्ति का वास हो गया तो उसे ऐसी फीलिंग और अनुभव होगा कि सचमुच मुझ पर किसी शक्ति का नियंत्रण है और वह शक्ति ऐसा चाहती है और वैसा चाहती है।

मनोरोग की दूसरी खास बात यह है कि रोगी जो भी समाधान करेगा जैसे की मजारों पर जाना, झूमना ,खेलना ,ताबीज एवं हाजिरी आदि लगाना तो शुरुआत में ऐसी फीलिंग होगी कि अब मैं ठीक होने लगा हूं और पहले से बेहतर स्थिति में हूं । दिल की घबराहट कुछ कम महसूस होगी सर दर्द या चक्कर आने में कुछ कमी दर्ज होगी । दिनचर्या में सुधार महसूस होगा और इस सुधार का एकमात्र कारण यह होता है कि रोगी खुद मान लेता है कि मैं ठीक हो रहा हूं सिर्फ इसलिए वह थोड़े टाइम को खुद को रिलीफ में महसूस करता है।

जबकि वास्तविक रूप से वह समस्या ज्यों कि त्यों बनी रहती है बल्कि यह कहना चाहिए की समस्या एक कदम और बढ़ चुकी होती है। मानसिकता में एक बल और पड़ चुका है । मानसिकता पहले से ज्यादा उलझ चुकी है। इसका रहस्य तब खुलता है जब निश्चित समय के गुजर जाने के बाद भी रोगी सामान्य नहीं हो पाता तो उसकी जो हौसला मिला होता है, जो आशा जगी रहती है उसी के वशीभूत वह अच्छा महसूस कर रहा था । उस आशा के धूमिल होने पर रोगी खुद को पहले से ज्यादा समस्याओं से ग्रस्त पाता है और अपने को ठगा महसूस करता है।

भूत प्रेत की भ्रमित स्त्रियों में देखा गया है कि परिवार और आसपास के लोगों का मुंह बंद करने के लिए धार्मिक स्थलों मजार दरगाह आदि पर जाती हैं और वहां झूमती खेलती हैं और भूत प्रेत की बड़ी भूमिका अदा करने की कोशिश करती हैं ताकि किसी तरह कोई समझे कि मैं वास्तविक रूप से बहुत परेशान हूं।

देखा गया है कि उपरोक्त कारणों से वशीभूत रोगी विभिन्न स्थलों पर झूमते खेलते नजर आते हैं। वास्तविकता यह है कि इस प्रकार के रोगी को कोई भूत प्रेत पकड़ा नहीं होता। और न मौलवी मजारों में कोई शक्ति, ना कोई पेशी पड़ती, ना कोई मुकदमा चलता है । क्योंकि ऐसा मानकर रोगी चलता है कि मुझपर भूत प्रेत की छाया है इसलिए उसे ऐसी फीलिंग होने लगती है।

इसलिए हमें चाहिए कि समाज में फैले इस प्रकार के भ्रम से स्वयं एवं परिवार तथा समाज को बचाने का प्रयास करें। नियमित रूप से योग- ध्यान- प्राणायाम करें ! अपनी आत्म शक्ति बढ़ाएं।भूत प्रेत के भ्रम से मुक्ति हेतु अपने मन में बैठे हुए वहम को निकाले।

नोट – इस लेख को स्वयं पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ायें। जो अनपढ़ हैं उन्हें भी पढ़कर सुनाए। अपने समूह में भी भेजे। जिससे समाज में व्याप्त रूढ़ियों को खत्म किया जा सके।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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