बिठाये पहरे हैं | Bithaye Pahre Hain
बिठाये पहरे हैं
( Bithaye Pahre Hain )
दर पे मुर्शिद बिठाये पहरे हैं
इन के सर पर भी अब तो ख़तरे हैं
दाग़ दामन पे लाख हों इनके
फिर भी उजले सभी से चेहरे हैं
जब्र करता है इसलिए जाबिर
लोग गूंगे हैं और बहरे हैं
तुम भी दिल में हमारे बस जाओ
इसमें कितने ही लोग ठहरे हैं
राब्ता बढ़ रहा है लोगों से
जब से हालात अपने संँवरे हैं
फ़िक्र रहती है इसलिए उनकी
उनसे रिश्ते ही इतने गहरे हैं
सब ख़ुशी से यहाँ रहो साग़र
मेरे दिल में हज़ारों कमरे हैं
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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