मुझपे ऐतबार कर | Ghazal Mujhpe Aitbaar Kar
मुझपे ऐतबार कर
( Mujhpe Aitbaar Kar )
शिकायतें हज़ार कर तू यार बार बार कर
मगर हैं इल्तिज़ा यही की मुझपे ऐतबार कर।
खफ़ा हो यूं की प्यार से तुझे मना लिया करूं
मगर न बदगुमानियों से दिल को तार तार कर।
ये बेनियाज़ी और बेरुखी बढ़ाते तिश्नगी
कोई तो कौल दरमियान में कोई क़रार कर।
कभी मिरे क़रीब आ कभी तो दिल से दिल मिला
बढ़ा के फ़ासले न ऐसे दिल को बेकरार कर।
अना अज़ीज़ है तुझे तो देख ये न हो कहीं
तू जीत जाय और मैं चला न जाऊं हार कर।
गुज़र गई तमाम उम्र राह देखते हुए
न अब पुकार तू मुझे ज़रा तो इंतिज़ार कर।
तुझी को चाहती हूं मैं यही है बंदगी मिरी
मेरी इबादतों को हसरतों में मत शुमार कर
बढ़ी है हब्स इस कदर फ़िज़ा -ए -दिल उदास है
ज़रा तू मुस्कुरा के इस खिजां में कुछ बहार कर।
बड़े हसीन हैं नयन वो जुगनुओं से नैन दो
ज़रा ज़रा सी बात पे न इनको अश्क़बार कर।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
इल्तिज़ा – निवेदन आग्रह
बेनियाज़ी – उपेक्षा
तिश्नगी- प्यास
अना – अभिमान
हब्स – घुटन उमस
खिजां – पतझड़
अश्क़बार – आंसुओं से भरी