बोलते हैं | Bolte Hain
बोलते हैं
( Bolte hain )
कहां कब ये बिचारे बोलते हैं
नहीं उल्फत के मारे बोलते हैं।
मुहब्बत है मगर अफसोस हैवो
नहीं हक़ में हमारे बोलते हैं।
परिंदे बेजुबां बोले न बोलें
निगाहों के इशारे बोलते हैं।
जिसे मतलब नहीं वो बेवज़ह क्यूं
मसाइल में तुम्हारे बोलते हैं।
दिखे हैं अंजुमन में ग़ैर की वो
ये हमसे लोग सारे बोलते हैं।
जगे कल वस्ल में शब भर थके हैं
ज़रा सोने दो तारे बोलते हैं।
नज़ारा है उसी का सबसे दिलकश
ये ज़न्नत के नज़ारे बोलते हैं।
मुख़ालिफ़ आज कल बनकर वो मेरे
रकीबों के सहारे बोलते हैं
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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