Hindi Poem Tarabiyat

तरबियत

( Tarabiyat )

 

सौ बार टूटता है
सौ बार जोड़ता है,
बहुत मेहनत से कुम्हार
एक बर्तन बना पाता है,

मानो तो इंसान भी
गीली मिट्टी होता है,
हर ऐब से पाकीज़ा
शफ़्फ़ाफ दिली होता है,

सबसे पहले माँ की गोदी में जाता
पहला स्कुल वो वहाँ पाता है
लफ़्ज़ों को समझना नहीं आता,
तभी वो पहला सबक सीखता है

तालीम से समाज में रहना सीखता
तरबियत से जीना,
बिना तरबियत इंसान वैसे ही है
जैसे कोई नाबीना

माँ बाप भी कुम्हार ही होते हैं
हमारे लिए सारा संसार होते हैं
कभी नर्मी से कभी सख़्ती से
हमें इक सांचे में ढाल रहे होते हैं

उनकी बरसों की मेहनत न बर्बाद हो
तरबियत की खुशबू आबाद हो
हमारे अख्लाक की यूँ धूम मचे
वालिदैन का चेहरा सदा साद हो !

Aash Hamd

आश हम्द

पटना ( बिहार )

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