Meri Bahu
Meri Bahu

मेरी बहू

( Meri Bahu ) 

 

बज उठ्ठेगी घर -घर में फिर सबके ही शहनाई
उधड़े रिश्तों की कर लें गर हम मिलकर तुरपाई

जीत लिया है मन सबका उसने अपनी बातों से
मेरे बेटे की दुल्हन इस घर में जब से आई

घर में बहू की मर्ज़ी के बिन पत्ता भी नहीं हिलता
प्यार से उसने सबके दिल पर ऐसी धाक जमाई

जिसमें बहू ख़ुश -ख़ुश दिखती उसमें ही सब ख़ुश होते
सास ससुर भी कहते हमने अच्छी बेटी पाई

ज़िम्मेदारी लेली बहू ने सब घर की रह-रह कर
वक़्त ज़रूरत पर दे देती खाना और दवाई

बेटी अपनी हीरा है तो बहू निकली है पुखराज
बेटी रुखसत होने की कर दी इसने भरपाई

साग़र मेरी बहू तो लाखों ख़ूबी की मालिक है
क्या-क्या मैं गिनवाऊँ तुमको अब उसकी अच्छाई

 

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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