हम भारत के लोग हैं
सीधे सच्चे सादे
इसी का फायदा अक्सर
विदेशी मूल के लोग हैं उठाते
चंगुल में फंसकर हम उनके
सदियों से हैं हानि उठाते।
डराते धमकाते बहकाते हमें है
आपस में हैं लड़ाते
यही खेला खेलकर
संसाधनों पर हमारी कब्जा जमाते,
जब तक हम समझ पाते तब तक
मलाई डकार जाते।
शासन प्रशासन में हैं वही सब कब्जा जमाए,
हमारे हक की खा-खाकर अतिशय हैं वे मोटाए।
हमारी अशिक्षा गरीबी का वो फायदा हैं खूब उठाए,
बाबा साहब ने यह देखकर
हम भारतीयों ( मूलनिवासियों) को समझाए;
कैसे उन्नति प्रगति करनी है?
मार्ग दिए बतलाए,
यहां तक कि संविधान में कई-
प्रावधान हैं कर गए।
तब जाकर हम जगे हैं कुछ कुछ,
पढ़ लिखकर हम बढ़े हैं कुछ कुछ।
दृष्टिकोण में लाए हैं बदलाव,
शिक्षित संगठित होकर अब चल रहे सधे हुए हम दांव।
अन्याय के विरुद्ध स्वर उठा रहे,
सड़क से संसद तक आवाज पहुंचा रहे।
संवैधानिक प्रावधानों की सीमा में रहकर,
उठ खड़े हुए हैं डटकर।
कुछ मिली है कामयाबी,
अभी भी बहुत कुछ है बाकी।
जाग जाओ भारत के लोगों अब भी समय है,
वरना अब तो हमारी दुर्गति तय है।