Book review behad muhabbat

युवाओं के लिए बेहद चर्चा का विषय रहा बेहद मोहब्बत | Book review

बिहार कई बड़े साहित्यकारों की धरती रही है। निरंतर इस मिट्टी से कोई न कोई कवि और लेखक निकलता ही आ रहा है। इसी कड़ी में युवा साहित्यकार कवि व लेखक आलोक रंजन की दुसरी काव्य संग्रह बेहद मोहब्बत प्रकाशित हो चुकी है। यह किताब आनलाईन बाजार के हर दुकान पर उपलब्ध है।

आलोक रंजन का जन्म 15 अगस्त 2003 को बिहार में कैमूर के सिरसी गांव में हुआ। इनके पिता का नाम राजवंश राम और माता का नाम संगीता देवी है।जो पेशे से एक शिक्षक हैं।

बचपन से ही इनकी गहरी रूचि साहित्य के प्रति रही है। बाल्य अवस्था से ही कविताओं से खूब प्रेम है।बचपन में अख़बारों को खुब पढ़ते थे और पढ़ते पढ़ते साहित्य से लगाव हो गया।प्रारम्भ में सिर्फ कविताएं लिखते थे।अब कविता व कहानी के साथ शायरी व लेेख भी लिखते हैं।

ये हजार से अधिक अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय अखबारों एवं पत्रिकाओं के लिए भी लिख चुके हैं।इनके कई सांझा संग्रह किताब भी प्रकाशित हो चुकीं हैं।इनके साहित्य में दिए गए योगदान के लिए बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने युवा साहित्यकार सम्मान से नवाजा इसके अलावा इन्हें साहित्य सारथी सम्मान, साहित्य उत्कर्ष सम्मान,साहित्य गौरव सम्मान 2021, भारत माता अभिनन्दन सम्मान 2021 से नवाजा जा चुका है।

इनकी एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है। जिसका नाम पहला पन्ना है। ये अपने माध्यम से प्रगतिशील एवं मानवतावादी दृष्टि से पूर्ण कविताएं और कहानियां लिखते हैं।साथ ही अपने रचनाओं से अपनी संस्कृति व सभ्यता को सहेजने का काम करते हैं।

आलोक अभी दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री वेंकटेश्वर महाविद्यालय में हिन्दी विभाग से अपनी स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। आज पढ़ाई के साथ साथ साहित्य जगत में अपना नाम बना रहे हैं। किताब के बारे में आलोक कहते हैं कि इस पुस्तक में प्रेम को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा गया है।

साथ ही आलोक रंजन ने कहा है प्रेम मात्र आज होटल या बाजारों की चीज नहीं बल्कि प्रेम एक लगाव है जो कि एक व्यक्ति से दूसरे किसी व्यक्ति के अंदर सामंजस्य पैदा करता है।

आजकल के समय में प्रेम को एक ग़लत तरह से देखा जाता है लेकिन इस किताब को पढ़कर हम प्रेम के लिए अपना नजरिया बदल सकते हैं।प्रेम हम किसी वस्तु से कर सकते हैं जिस प्रकार एक मिस्त्री को अपने औजार से प्रेम होता है एक विद्यार्थी को अपने विषय से प्रेम होता है उसी प्रकार एक गुरु को अपने विद्यार्थी से प्रेम बना रहता है।इस प्रकार प्रेम हर जगह है।

ज़रूरत हैं आज जिन्दा रखने की। प्रेम के अलावा कई ऐसे सामाजिक मुद्दे हैं जिस पर लेखक ने खुलकर बोला है।शिक्षा मंत्रालय,भारत सरकार, नई दिल्ली राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संपादक व प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ लालित्य ललित कहते हैं कि एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता सृजनात्मक क्षमता का धनी नवयुवक आलोक रंजन की कविताएं आधुनिक परिवेश के साथ मौजूदा स्थितियों का रेखांकन प्रस्तुत करती है।

लेखक में चीजों को समझने की समझ और आगे बढ़ने की ललक है।इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि जब इस उम्र में लड़के दुपहिया पर किसी फिल्म के गाने गुनगुनाते हुए निकल सकते है और निकलते भी है ऐसे समय में आलोक ने आने को सुरक्षित रखा है अपनी लेखकीय प्रतिभा के चलते।यह भी कहना होगा कि आलोक का परिवेश और उसके संगी साथी किसी व्यसन के आदी नहीं ,नहीं तो यह उम्र बहकने की ज्यादा होती है।इनकी कविताओं में मौसमी ताजग़ी है जिसे वे बरकरार रखेंगे।

ऐसी आशा वे अपने पाठकों को दे सकते हैं। मैं उन्हें आगे बढ़ने के लिए और लेखकीय क्षमताओं का सही मायने में उपयोग के लिए शुभकामनाएं देना चाहूंगा कि वे मेहनत से रचनाकर्म करें और वर्तमान में अनेक मठाधीश है उनके किसी खेमे में दाखिला न लेकर मन से सृजन करें।

मुम्बई के एसजीएसएच प्रकाशन से प्रकाशित हुई से बेहद मोहब्बत इस प्रकाशन की संस्थापक दिव्या त्रिवेदी जी हैं। दिव्या जी के साथ जाने माने डिजाइनर हरमिंदर सिंह जी ने प्रकाशन में काफी सहयोग किया।

आप यहां से किताब प्राप्त कर सकते हैं:

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कवि : आलोक रंजन
कैमूर (बिहार)

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