ब्राह्मण और केकड़ा
ब्राह्मण और केकड़ा

 ब्राह्मण और केकड़ा : साथी चाहे दुर्बल ही हो उसे कम न आंके ( पंचतंत्र की कहानियां )

 

( Panchtantra Ki Kahani : Brahaman Or Kekra )

 

बहुत साल पहले की बात है। पहले एक गांव में ब्रह्म देव नाम का एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह दूर दूर गाँवों में जाकर भिक्षा मांगता था जिससे उसका और उसकी मां का पेट भर सके।

एक बार वह एक बहुत दूर के गांव में भिक्षा मांगने के लिए जा रहा था। ब्राह्मण की मां ने जब यह देखा कि उसका बेटा ब्रह्म देव अकेले ही जा रहा है तब उन्होंने उसे रोकने की कोशिश की और कहा कि बेटा अकेले मत जाओ, किसी को अपने साथ ले लो।

तब ब्रह्म दत्त ने अपनी मां से कहा कि “मां इसमें डरने की कोई बात नही है, डरो मत, यह रास्ता जाना पहचाना है और यहां पर किसी भी प्रकार का कोई डर या खतरा नही है।

मै शाम तक जल्दी वापस आ जाऊंगा”।  लेकिन मां तो मां होती है, उसे अपने बच्चे की फिक्र होती है। मां ने कहा अच्छा तो ठीक है तू अपने साथ इस केकड़े को भी ले जा, ‘एक से दो भले’।

तब ब्रह्म देव ने सोचा कि यह छोटा सा पिद्दी सा केकडा भला मेरी क्या मदद करेगा, लेकिन मां की बात का मान रखने के लिए ब्रह्म दत्त केकड़े को अपने साथ ले जाने के लिए राजी हो गया।

ब्रह्म देव की माँ ने कपूर के पुड़िया में केकड़े को रख दिया और ब्रह्म देव उस पुड़िया को लेकर अपने काम पर चला गया। जाते जाते रास्ते में दोपहर हो आई।

तभी ब्रह्म देव को एक पेड़ दिखा, वह थक गया था तो उसने ने सोचा कि क्यों न थोड़ी देर आराम कर लेते हैं।

वह पेड़ के नीचे लेट गया और उसे नींद आ गई। तभी पेड़ के नीचे एक बिल से एक सांप निकला। सांप जैसे ही ब्रह्म देव को काटने जा रहा था, तभी उसे कपूर की महक आई।

तब साँप ब्रह्म देव के बजाय कपूर की पुड़िया जिस थैली में रखी थी उस थैले में अपना सर डालकर घुस गया, साँप के थैले के अंदर घुसने से पूड़िया खुल गई।

जैसे ही कपूर की पुड़िया खुली, केकड़े ने सांप को अपने पंजों से पकड़ लिया और उसे मार डाला।

इतने के ब्रह्म देव की भी नींद खुल गई और उसने मारे हुए सांप को देखा तो सारा माजरा समझ गया कि केकड़े ने सांप को मार दिया है।

तब ब्रह्म दत्त ने कहा कि अच्छा किया कि मां की बात मान ली और इस केकड़े को अपने साथ ले आया। आज इसके बदौलत ही मेरी जान बच पाई है।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमे अपने से बड़ो की बात का मान रखना चाहिए और कभी भी अपने साथी को दुर्बल नही समझना चाहिए, न ही उसे कम आंकना चाहिए, जरूरत पड़ने पर यह दुर्बल साथी भी बड़ी मदद कर जाते हैं।

 

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लेखिका : अर्चना 

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