
बुढ़ापे की देहरी
( Budhape ki dehri )
मनहरण घनाक्षरी
बुढ़ापे की देहरी पे,
पग जब रख दिया।
हाथों में लकड़ी आई,
समय का खेल है।
बचपन याद आया,
गुजरा जमाना सारा।
बालपन की वो यादे,
सुहानी सी रेल है।
भागदौड़ जिंदगी की,
वक्त की मार सहते।
लो आया बुढ़ापा देखो,
नज़रो का फेर है।
जीवन के खट्टे मीठे,
अनुभव प्यारे-प्यारे।
पल-पल मुस्कुराते,
जीवन का मेल है।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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