
है तुझे भी इजाजत
( Hai tujhe bhi ijazat )
उतर आओ चांदनी सी मिल जाए जब भी फुर्सत।
महकती वादियों में मिलना, है तुझे भी इजाजत।
है तुझे भी इजाजत,है तुझे भी इजाजत
रुप का श्रंगार हो तुम, गुल गुलशन बहार हो तुम।
कुदरत का कोई अजूबा, प्यार का इजहार हो तुम।
खिले हुये चमन की कोई, कलियों की हो इनायत।
तुझ संग जुड़ा जीवन ये मेरा, है तुझे भी इजाजत।
है तुझे भी इजाजत,है तुझे भी इजाजत।
तान हो या गीत कविता, सात सुरों का हो संगीत।
दिलों के तार जुड़ जाते, दो दिलों की सच्ची प्रीत।
रफ्ता रफ्ता बस जाओ, सागर मिलन की बाबत।
इठलाती बलखाती सरिता, है तुझे भी इजाजत।
है तुझे भी इजाजत,है तुझे भी इजाजत।
स्वप्न हो कोई मधुर सा, सत्य का आभास हो तुम।
प्रेम का बहता झरना, मेरे दिल के पास हो तुम।
देखता हूं जब भी तुमको, कानों में घुंगरू बाजत।
खोल दो ये कपाट दिल के, है तुझे भी इजाजत।
है तुझे भी इजाजत,है तुझे भी इजाजत।
आशाओं की किरण हो, या गौरव का बखान हो।
शुभ कर्म कीर्ति पताका, परचम लहराती शान हो।
कवि की कल्पना कोई, भाव भरी उपमा साजत।
महका दो घर आंगन मेरा, है तुझे भी इजाजत।
है तुझे भी इजाजत,है तुझे भी इजाजत।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )