Buland hunkar ghazal

बुलंद हुंकार | Poem Buland Hunkar

बुलंद हुंकार

( Buland hunkar )

 

मझधार में डूबी नैया अब पार होनी चाहिए
कवियों की भी संगठित सरकार होनी चाहिए

 

सत्ता को संभाले कविता लेखनी की धार बन
मंचों से गूंज उठे वो बुलंद हूंकार होनी चाहिए

 

मातृभूमि को शीश चढ़ाते अमर सपूत सरहद पे
महासमर में योद्धाओं की ललकार होनी चाहिए

 

जिंदगी की जंग में नित बढ़ते रहे पथिक सदा
हौसलों की पग पग पर दरकार होनी चाहिए

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

अंतिम यात्रा | Kavita antim yatra

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *