कैसा यह समय है ?
( Kaisa Yah Samay Hai )
शिक्षा को मारा जा रहा है
अशिक्षा को बढ़ावा देकर
असल को महरूम किया जा रहा
चढ़ावा लेकर
हिसाब बराबर किया जा रहा
कुछ ले दे कर
विश्वास पर हावी है अंधविश्वास
गरीबों को मयस्सर नहीं अब घास
देखता आसमान दिन-रात
बरसे तो बने कुछ बात
टूटी है कमर
गृहस्थी घसीट रहा है
आम आदमी अब
तिल तिल कर पिस रहा है
कदम कदम पर
मुश्किलें खड़ी हैं
अपने सोच से भी बहुत बड़ी हैं
सोचा समय बदलेगा तो
दिन अपना भी निकलेगा?
लेकिन यह भी भस्मासुर निकला,
एक एक कर सबको निगला।
लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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