‘रजनी’ के भक्तिमय दोहे
‘रजनी’ के भक्तिमय दोहे बुद्धिप्रवर बुधवासरः, पूजूँ गणपति देव।मंगलछवि शुभदायकः, जपता उर अतएव।। दोहा लिखने मैं चली, गणपति देना साथ।रहें भवानी दाहिने, लिए कमल- दल हाथ।। गुरु को चिट्ठी में लिखा, हरें कलुष-संताप।मैं अज्ञानी पातकी, पथ के दीपक आप।। कहते देवी ज्ञान की, हंसवाहिनी मात।बुद्धि विमल रहती सदा, यथा पंक जलजात।। वन्दन है माँ शारदे,…